राजस्थान में अनार की खेती Anar ki kheti करके आप साल में 10 से 15 लाख तक की कमाई कर सकते हैं क्योंकि इसकी खेती करने के लिए अधिक तापक्रम की आवश्यकता होती है और राजस्थान का तापमान गर्म रहता है अगर आप भी अनार की खेती करना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं।
राजस्थान में अनार की खेती घरेलू और विदेशी बाजारों में मांग बढ़ने के कारण लोग ज्यादा पसंद कर रहे हैं हमारे द्वारा बताए गए अनार की उत्तम तकनीक के द्वारा आप भारत के अन्य राज्यों में भी इसकी खेती आसानी से कर सकते हैं जैसे महाराष्ट्र गुजरात उत्तर प्रदेश आंध्र प्रदेश कर्नाटक तथा राजस्थान वर्ष 2016-17 में २.10 लाख हेक्टेयर से भी ज्यादा 24 लाख मैट्रिक टन उपज प्राप्त की गई थी।
भूमि (Soil)
अनार की खेती करने के लिए गहरी बलुई दोमट भूमि सबसे उपयुक्त होती है परंतु छारीय भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है यही नहीं लवणीय पानी से सिंचाई करके भी अनार की अच्छी पैदावार की जा सकती है अनार के पौधे में लवण एवं छार इयत्ता सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है इसके लिए 6.5 से 7.5 पीएच मान उपयुक्त रहता है.
जलवायु (Climate)
अनार के अच्छे उत्पादन के लिए शुष्क एवं अर्ध शुष्क क्षेत्र की जलवायु अति उत्तम है फलों के विकास तथा पकने के समय गर्म एवं जलवायु उपयुक्त होती है पूर्व विकसित फलों में रंग तथा दोनों में गहरा लाल रंग तथा मिठास के लिए अपेक्षाकृत कम तापक्रम की आवश्यकता होती है |
वातावरण तथा मर्दा में नमी एवं तापक्रम में अत्यधिक उतार-चढ़ाव से फल फटने की समस्या बढ़ जाती है जिससे ईसकी गुणवत्ता में प्रभाव पड़ता है इसके पकने के समय लगभग 40 डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा तापक्रम होना आवश्यक है.
उन्नत किस्में (Improved Varieties)
यदि आप राजस्थान में अनार की खेती करना चाहते हैं तो आपको राजस्थान की जलवायु मृदा और पानी की गुणवत्ता और उपलब्धि के अनुसार ही किस्मो का चुनाव करना अति महत्वपूर्ण है राजस्थान के शुष्क जलवायु के लिए जालौर सीडलेस जी 137 पी 23 मृदुला, भगवा आदि किस्मे अति उत्तम मानी जाती है |
जालौर सीडलेस में जहां दाने मीठे तथा मुलायम होते हैं वही जी 137, पी-23 के फल बहुत ही आकर्षक तथा बड़े होते हैं जिसकी अच्छी कीमत बाजार में मिल जाती है इनमें फटने की समस्या भी कम होती है मृदुला,भगवा और सिंदूरी फलों का रंग गहरा चमकीला लाल होता है जिसकी वजह से बाजार में भाव काफी अच्छे मिल जाते हैं
पौध तैयार करना
अनार का प्रवर्धन बीजों से किया जा सकता है यदि आप कम समय में को तैयार करना चाहते हैं तो आपको कलम के द्वारा वनस्पति प्रवर्धन की व्यवसायिक विधि का प्रयोग करना चाहिए कमले तैयार करने के लिए 1 वर्षीय पक्की हुई टहनियों को चुनते हैं
लगभग 20 से 30 सेंटीमीटर लंबी स्वास्थ्य कलमे लेते हैं जिनमें तीन से चार स्वास्थ्य कलियां मौजूद होनी चाहिए कलम लेने के बाद उसमें ऊपर का कटाव आंख के 5.5 सेंटीमीटर ऊपर और नीचे का कटाव आँख के ठीक नीचे करना चाहिए |
पहचान के लिए कलम का ऊपरी कटाव तिरछा एवं नीचे का कटाव सीधा बनाना चाहिए इसके बाद कलमों को 200 पीपीएम इन्डोल एसिटिक एसिड के प्रयोग करना चाहिए जिससे कि उन पौधे की जड़ों की संख्या बढ़ जाती है.
या कलमो 0.5 प्रतिशत कार्बेंडाजिम या कॉपर ऑक्सिक्लोराइड के घोल में भिगो लेना चाहिए तथा भीगे हुए भाग को छाया में सुखा देना चाहिए कमलो को लगाने से पहले आधार भाग का 6 सेंटीमीटर सिरा 2000 की पी पी एम( २ ग्राम /ली )आई बी ए के घोल में 55 सेकंड के लिए उपचारित करना चाहिए |
जिससे जड़े शीघ्र निकलने लगती है और कलमो को उपयुक्त मिश्रिण से भरी हुई थैली में थोड़ा तिरछा करके रोपण कर देते हैं कलम को आधी लंबाई भूमि के भीतर तथा आदि बाहार रखते हैं दो आंखें भूमि के बाहर के अन्य आंखें भूमि में गाड़ देते हैं |
कलम को काटते समय यह ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक होता है कि कलम कहीं उल्टी में लग जाए कलम लगाने के पश्चात सिचाई करते हैं वह उसके बाद नियमित सिंचाई करते रहना चाहिए लगभग 2 महीने बाद अधिक बड़ी हुई टहनियों को कटाई छटाई कर देना चाहिए तथा समय-समय पर कृषि क्रियाएं निराई गुड़ाई भी की जानी चाहिए.
बाग की स्थापना
अनार का बगीचा लगाने के लिए आपको रेखांकन या गड्ढा खोदने का कार्य मई महीने में संपन्न कर लेना चाहिए इसके लिए वर्गाकार या आयताकार विधि से 4 गुणा 4 मीटर या 5 गुना 3 मीटर की दूरी पर 60 गुना 60 गुना 60 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे खोदकर 1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के घोल से अच्छी तरह भिगो देना चाहिए इसके बाद 50 ग्राम प्रति गड़े के हिसाब से कार्बोनेल चूर्ण एवं थिमेट का बुरकाव भी गड्डा भरने से पहले करना चाहिए.
जिन स्थानों पर बैक्टीरियल ब्लाइट की समस्या हो वहां पर गड्डो में 100 ग्राम कैलशियम हाइपोक्लोराइट से उपचारित करना चाहिए उपजाऊ मिट्टी में 10 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद मींगनी की खाद 2 किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट 2 किलोग्राम नीम की खली तथा यदि संभव हो तो 25 ग्राम टिकोग्रामा आदि को मिलाकर गड्डो के ऊपर तक भर कर पानी दे देना चाहिए |
जिससे मिट्टी अच्छी तरह से बैठ जाती है पौधरोपण के एक दिन पहले 100 ग्राम नत्रजन 50 ग्राम फास्फोरस 50 ग्राम पोटाश प्रति गड्डे के हिसाब से डालने से भी पौधों की स्थापना अच्छी होती है पौधारोपण के लिए जुलाई और अगस्त में अच्छा माना जाता है राजस्थान में अनार की खेती करने के लिए यह विधि बहुत उपयुक्त होती है.
अनार के पौधों की कटाई छटाई
राजस्थान में अनार की खेती anar ki kheti करने के लिए पौधों में आधार से अनेक शाखाएं निकलने लगती है यदि इनको समय पर नहीं कटाई की जाती है तो यह अनेक मुख्य तने बन जाते हैं जिससे उपज और गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
उपज तथा गुणवत्ता की दृष्टि से प्रति पौधों को तीन से चार बार मुख्य तने ही रखनी चाहिए जब शेष को समय समय पर काटते रहना चाहिए सुखी रोगग्रस्त टहनियों पत्तियों शाखाओं आदि को समय-समय पर निकालते रहना चाहिए जिससे कोई बीमारी का प्रकोप पौधे पर ना लग पाए.
खाद एवं उर्वरक
उर्वरक एवं सूक्ष्म पोषक तत्व अनार की खेती करने के लिए बहुत आवश्यक है मृदा में 10 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद 250 ग्राम नाइट्रोजन 225 ग्राम फास्फोरस 125 ग्राम पोटेशियम प्रति वर्ष प्रति पेड़ देना चाहिए शुरू में 3 वर्ष तक जब पौधों में फल नहीं लगते हैं तो उर्वरकों को तीन बार में जनवरी जून तथा सितम्बर में देना चाहिए कितना चौथे वर्ष में जब फूल आने लगते हैं तो मौसम के अनुसार दो बार देना चाहिए.
सिंचाई एवं जल प्रबंधन
राजस्थान में अनार की खेती anar ki kheti 2023 करने के लिए या भारत के अन्य स्थानों पर खेती करने के लिए सिंचाई एक महत्वपूर्ण कारण है गर्मियों में 5 से 7 दिन सर्दियों में 10 से 12 दिन तथा वर्षा ऋतु में 10 से 15 दिन के अंतराल पर 30 से 40 लीटर प्रति पौधा सिंचाई देने की आवश्यकता होती है टपक सिंचाई विधि के द्वारा अत्यधिक लाभ होता है क्योंकि इससे 20 से 50% पानी की बचत हो जाती है जो कि राजस्थान में बड़ी समस्या है.
तुड़ाई एवं उपज
आमतौर पर अनार की खेती की पौध लगाने के 5 से 7 माह के बाद फल तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं फलों का रंग हल्का लाल होने लगता है फल पकना शुरू हो जाती हैं प्रारंभिक अवस्था में प्रत्येक वक्ष पर 40 से 50 फल आते हैंपूर्ण रूप से विकसित वृक्षो से 200 से 250 फल प्राप्त किए जा सकते हैं कटाई में देरी करने से फलों में दरार आ जाती है इससे पैदावार कम हो सकती है इसलिए समय पर तुडाई की जानी चाहिए.
रोग
पत्ति और फल धब्बा रोग
यह रोग फफूंद के कारण फैलता है इसमें पत्तियां और फल के ऊपर से भुरे धब्बे बन जाते हैं जिससे फलों के बाजार भाव गिर जाते हैं उत्पादन कम होता है इसका उपचार करने के लिए कार्बेंडाजिम 1 मिलीग्राम /ली या कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 2.5 ग्राम पर लीटर का 15 से 20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहते हैं.
फल सड़न रोग
इस रोग में अनार के फल काले पड़ जाते हैं और सडकर खराब हो जाती है इसके उपचार के लिए फूल आने के समय उसके 20 दिन बाद उपयुक्त दवा में से किसी एक दवा का छिड़काव कर देते हैं.
कीट
माहू कीट
यह कोमल पत्तियों पुष्प कलियों से रस चूसकर उन्हें हानि पहुंचाते हैं जिसमें पत्तियां टेढ़ी-मेढ़ी होकर गिर जाती है.
इसकी रोकथाम करने के लिए 2% नीम के बीज का काढ़ा बनाकर 0.04 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव करना चाहिए.
अनार की तितली
अनार की खेती anar ki kheti में तितली के द्वारा दिए गए अंडों से निकली सुन्डिया फलों को छेद करती है उसके अंदर प्रवेश कर जाती है तथा फलो के गूदे को खाती रहती है.
इसका उपचार करने के लिए प्रभावित फलों को तोड़कर नस्ट कर देना चाहिए तथा कार्बेरील 4 ग्राम/ लीटर दवा का छिड़काव करना चाहिए.
अनार के फल का चटकना
अनार में फलों का चटकना एक गंभीर समस्या है जो शुष्क क्षेत्रों में अधिक होता है इसके प्रकोप से उत्पादन में कमी और गुणवत्ता में कमी आती है यह भूमि में नमी के स्तर में अचानक और तीर उतार-चढ़ाव से फल चटक जाते हैं इसके अतिरिक्त भूमि में बोरान की कमी को भी इसके लिए उत्तरदाई माना जा सकता है इसके नियंत्रण के लिए मूल उपाय किए जाने चाहिए.
इससे बचने के लिए भूमि में नमी का स्तर समान बनाए रखना चाहिए और 0.2 प्रतिशत बोरान का छिड़काव करना चाहिए इसके अलावा रोग प्रतिरोधक किस्मों का चुनाव करना चाहिए जैसे शिखर, फ्रांसिस, पी एस 75, अप्पुली, आदि |
अनार की खेती से सम्बंधित प्रश्न उत्तर ( FAQ )
Q: राजस्थान में अनार की क्या रेट है?
Ans: राजस्थान में अनार का रेट 6000 से ₹8000 कुंटल होता है |
Q: सिंदूरी अनार की खेती ?
Ans: इसकी खेती करने के लिए गर्म स्थान उपयुक्त है सिंदूरी अनार की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है इसमें अधिकांश निवेश की जरूरत नहीं होती है पौधों को लगाने के लगभग 3 से 4 साल बाद ही फल देने लगते हैं |
Q: अनार की खेती कहाँ होती है?
Ans: अनार की खेती सबसे ज्यादा महाराष्ट्र राज्य में की जाती है जो कुल क्षेत्रफल का 70% और कुल उत्पादन का 66% है |
निष्कर्ष
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