गाजर की खेती कैसे करते हैं | जानिए गाजर को मोटा करने की दवा In Hindi

जाने की गाजर की खेती कैसे करते हैं। गाजर एक स्वादिष्ट और पौष्टिक सब्जी है जिसे आप आसानी से अपने बगीचे में उगा सकते हैं यहां आपको गाजर की खेती की संपूर्ण जानकारी दी गई है जिसमें बीज बोने का सबसे अच्छा समय, मिट्टी कैसे तैयार करें और अपने पौधों की पैदावार कैसे बढ़ाएं शामिल है. गाजर की खेती पूर्ण सूर्य के प्रकाश उपजाऊ मिट्टी और जल निकास की प्रबंध होने पर अच्छी तरह बढ़ती है।

गाजर की खेती की जानकारी

गाजर की खेती उत्तर प्रदेश, आसाम, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा में अत्यधिक रूप से पैदा की जाती है। नारंगी रंग की गाजर में कैरोटीन पाया जाता है जो आंखों के लिए फायदेमंद होता है.

इसकी खेती संपूर्ण भारत में मनुष्य के उपभोग के लिए तथा साथ ही पशुओं के चारे के लिए की जाती है इसको कच्चा या पक्का कर प्रयोग किया जाता है इससे विभिन्न प्रकार के आचार मिठाईयां हलवा गजरेला आदि तैयार किए जाते हैं. जन्म स्थान मध्य एशिया में पंजाब तथा कश्मीर की पहाड़ियां बताया गया है और दूसरा एशिया का केंद्र बताया गया। (गाजर की खेती कैसे करते हैं)

गाजर की खेती कैसे करते हैं

गाजर ठंडे मौसम की फसल है इसकी खेती के लिए 15 से 20 डिग्री सेल्सियस का तापमान अच्छा होता है तथा इसको गहरी, ढीली, दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है. यह अम्बलीफेरी  कुल का पौधा है।

गाजर की किस्में

गाजर की देशी किस्में

  • पूसा केसर
  • सिलेक्शन-233
  • सिलेक्शन-21
  • पूसा मेघाली
  • हाइब्रिड-1
  • हिसार मधुर
  • पूसा रुधिर
  • पूसा अंशिता
  • गाजर नंबर 29

गाजर की विदेशी किस्में

  • हाफ लॉन्ग मेंटर
  • कोरलेस
  • चैंटेनी
  • डॉनवस
  • गोल्डन हार्ट
  • इंडियन लोंग रेड
  • कश्मीर ब्यूटी
  • पूसा यमदग्नि
  • जीनो

गाजर की खेती के लिए आवश्यक जलवायु

यह ठंडे मौसम में उगाई जाने वाली फसल है फिर भी गाजर की कुछ जातियां अधिक तापमान के लिए भी सहनशील है जलवायु का गाजर की खेती में बहुत अधिक महत्व है क्योंकि गाजर का रंग और उनका विकास तापमान से प्रभावित होता है.

जो गाजर 10 से 15 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर उगाई जाती है उनका रंग कुछ अच्छा नहीं होता है जबकि जो गाजर 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर उगाई जाती है उनका रंग अच्छा होता है। और यदि गाजर की खेती 22 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर उगाई जाती है तो गाजर का रंग कम चमकीला होता है और जड़े छोटी रह जाती है क्योंकि कम तापमान में गाजर की जड़े मोटी और लंबी होती है। (गाजर की खेती कैसे करते हैं)

खेत की तैयारी

गाजर की बुवाई करने से पहले खेत को अच्छी प्रकार से दो से तीन गहरी जुताई करनी चाहिए तथा 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद मिट्टी में मिला देनी चाहिए ताजा या कम सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

गाजर मिट्टी

गाजर की खेती करने के लिए गहरी हल्की व भुरभुरी दोमट मिट्टी अच्छी होती है तथा भूमि का पी एच मान 6.5 के आसपास होना चाहिए। अधिक अम्लीय भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए भूमि में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

गाजर की खेती कब करें

जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च से जुलाई के बीच की जाती है गाजर की विदेशी जातियों की बुवाई अक्टूबर में या इसके बाद की जाती है तथा गाजर की देसी जातियों की बुवाई सितंबर से अक्टूबर के बीच गाजर की खेती करनी चाहिए।

गाजर बोने की विधि

गाजर गाजर की दो प्रकार से बुवाई की जाती है एक चौरस खेतों में दूसरा मेड़ों पर बुवाई की दो विधियां है.

गाजर की बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा बोने से गहराई 1.5 सेंटीमीटर होनी चाहिए इसके बीज छोटे होते हैं इसलिए बोने से पहले इसके बीजों को बालू या राख के साथ मिला लेना चाहिये। इसकी बुवाई पेड़ों के दोनों किनारों पर आवश्यक गहराई की नाली बनाकर की जाती है तथा पौधों के बढ़ने के बाद आपस की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर कर देते हैं.

खाद एवं उर्वरक

गाजर की फसल पोटाश की अधिक मात्रा चाहने वाली फसल है गाजर की खेती से अधिक पैदावार और मुनाफा कमाने के लिए खाद और उर्वरक का पर्याप्त मात्रा में उपयोग करना चाहिए 30 टन गोबर की खाद खेत की तैयारी करते समय प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए और 60 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 80-100 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है.

फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा बोने से पहले खेत में तैयारी करते समय देनी चाहिए तथा नत्रजन की आधी मात्रा 45 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए। (गाजर की खेती कैसे करते हैं)

गाजर में सिंचाई का समय

प्रथम सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करनी होती है तथा इसके बाद दूसरी सिंचाई 1 सप्ताह के अंतराल पर करनी चाहिए खेत में नमी बनाए रखने के लिए 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहने से उपज में वृद्धि होती है.

खरपतवार नियंत्रण

खेत तैयारी करते समय सभी प्रकार के हानिकारक खरपतवार को खेत से निकालकर अलग कर दे. खरपतवार नियंत्रण करने के लिए गाजर की खेती में दो से तीन बार निराई गुड़ाई करनी होती है. तथा गाजर के रंग को खराब होने से बचाने के लिए एक महीने बाद मिट्टी चढ़ा देना चाहिए।

खरपतवार का रासायनिक विधि द्वारा नियंत्रण करने के लिए पेंडीमेथिलीन 30 ई  सी 3 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी की मात्रा में घोलकर गाजर की बुवाई करने के 48 घंटे के अंदर छिड़काव कर देना चाहिए इससे आसानी से खरपतवार नियंत्रण हो जाती है।

गाजर की खुदाई

जब गाजर की जड़ों का ऊपरी सिरा 2.30 सेंटीमीटर से साडे 3.5 सेंटीमीटर व्यास का हो जाता है तब इसकी खुदाई करनी चाहिए खुदाई करने से पहले भूमि भूमि में नमी बनाने के लिए हल्की सिंचाई करनी चाहिए जिससे गाजर की खुदाई में कोई किसी प्रकार का नुकसान ना हो।

गाजर को मोटा करने की दवा

गाजर को मोटा करने के लिए खेत में नमी बनाए रखें और उचित मात्रा में उर्वरक दें इसके साथ साथ कीड़ों और बीमारियों से बचाएं। तथा उचित दूरी पर बुवाई करें। 50 दिन के बाद किसी भी ग्रोथ रेगुलेटर का प्रयोग ना करें और ना ही यूरिया का प्रयोग करना है. बस आपको खरपतवार नियंत्रण पर ध्यान देना चाहिए।

गाजर का बीज उत्पादन कैसे करें

गाजर का बीज उत्पादन करने के लिए जल निकास वाली भूमि का चुनाव करें जिस में पर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ उपलब्ध हो बीज उत्पादन करने के लिए भूमि कठोर ना हो तथा खेत की मृदा रोगो और कीटो से प्रभावित ना हो।

खेत की तैयारी के समय 25 किलोग्राम नाइट्रोजन 40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 45 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर में दे. मैदानी क्षेत्रों में बीज उत्पादन करने के लिए बीज की बुवाई अगस्त से सितंबर में करते हैं. यह परसेचित फसल है इसका सेचन मधुमक्खी और साधारण मक्खियों द्वारा होता है।

इसके अंदर स्वास्थ्य और अच्छी गाजर को फरवरी के महीने में उखाड़ कर निचले सिरे को 10 सेंटीमीटर काट दिया जाता है तथा 5 से 7 सेंटीमीटर पत्तियों के डंठल के साथ 10×10 सेंटीमीटर की दूरी पर उपजाऊ भूमि में लगाकर पानी दे दिया जाता है। लगाने के कुछ दिनों बाद इससे नए पत्ते और फूल निकलने लगते हैं इसके बाद बीजों को पकने के लिए छोड़ देते हैं बीज पकने के बाद काटकर काटकर सुखा लेते हैं।

गाजर के किट और रोग

भारत में गाजर की खेती में प्रमुख कीड़े मकोड़े एवं बीमारियां नहीं लगती है कुछ जिन का प्रकोप थोड़ा बहुत होता है, वह इस प्रकार है-

  • गाजर का घुन

  • लीफ हॉपर

  • गाजर की मक्खी

इनकी रोकथाम करने के लिए मेलाथियान 50 ई सी का। 0.1 प्रतिशत गोल का छिड़काव करना चाहिए या फिर एंडोसल्फान 35 ई सी का 0.07 प्रतिशत घोल का छिड़काव कर देते हैं.

वायरस रोग 

इसकी रोकथाम करने के लिए इस रोग से प्रभावित पौधों को खेत से उखाड़ कर जला देना चाहिए तथा रोग रोधी किस्म बोनी चाहिए।

जीवाणु जनित रोग

इसकी रोकथाम करने के लिए बोलने से पहले बीज को किसी भी पारे के योगिक से उपचारित कर लेना चाहिए (2 ग्राम मात्रा को 1 किलो बीज पर उपचारित करना चाहिए)

लीफ स्पॉट

इस रोग की रोकथाम करने के लिए कॉपर या कारबामेट का या ब्लाईटॉक्स का 3 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर देते हैं।

अर्ध गलन रोग

इस रोग में पौधे छोटी अवस्था में ही सड़कर गिर जाते हैं इसकी रोकथाम करने के लिए बोने से पहले बीजों को कैप्टन या ब्रासीकोल द्वारा 3 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर लेना चाहिए इसके बाद पौधों को हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।

निष्कर्ष: –

आज आपने इस आर्टिकल में जाना कि गाजर की खेती कैसे करते हैं और गाजर की खेती करने के लिए क्या-क्या विधि का उपयोग किया जाता है हम आशा करते हैं कि गाजर की खेती की जानकारी आपको अच्छी लगी होगी अगर अच्छी लगी हो तो अपने किसान भाइयों के साथ इसे शेयर जरूर करें धन्यवाद।

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