Angur ki kheti : अंगूर की खेती भारत में सबसे ज्यादा महाराष्ट्र राज्य में की जाती है तथा उत्पादन की दृष्टि से भी यह देश में नंबर वन पर है। अंगूर की खेती करने के लिए गर्म शुष्क और वर्षा रहित गर्मी तथा ज्यादा ठंडे वाले मौसम की आवश्यकता होती है तथा अंगूर की बुवाई दिसंबर से लेकर जनवरी के बीच में की जाती है। अंगूर आय का अच्छा स्त्रोत है अंगूर को ताजा सुखाकर या वाइन, जूस, जैम, जेली और सिरका बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
अंगूर का वितरण (Distribution of Grapes)
अंगूर पूरी दुनिया में बहुत पसंद किया जाने वाला फल है दुनिया में अंगूर के शीर्ष पांच उत्पादक है
1. चीन
2. संयुक्त राज्य अमेरिका
3. तुर्की
4. इटली
5. स्पेन
ये पांच देश दुनिया के अंगूरों का 70% से अधिक उत्पादन करते हैं। अंगूर विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाए जाते हैं, लेकिन वे गर्म, धूप वाले मौसम को पसंद करते हैं। वे अपेक्षाकृत सूखा-सहिष्णु फसल भी हैं।
यहां 2021 में दुनिया के शीर्ष 10 देशों के अंगूर उत्पादन को दर्शाने वाली तालिका दी गई है:
देश | उत्पादन (टन)
चीन | 117,234,000
संयुक्त राज्य | 74,190,000
तुर्की | 46,190,000
इटली | 45,300,000
स्पेन | 44,740,000
फ्रांस | 28,900,000
भारत में अंगूर की खेती (Grape cultivation in India)
भारत में महाराष्ट्र सबसे बड़ा अंगूर उत्पादक है इसके अलावा कर्नाटक आंध्रप्रदेश तमिलनाडु पंजाब अंगूर उत्पादन में अग्रणी राज्य है।
उत्तर भारतीय राज्यों में इसकी खेती पश्चिमी उत्तर प्रदेश हिमाचल प्रदेश मध्य प्रदेश और राजस्थान के क्षेत्र तक सीमित है | वाइन मेकिंग, जूस उत्पादन और सूखे मेवों के उत्पादन के लिए अंगूर की बढ़ती मांग के कारण आने वाले वर्षों में वैश्विक अंगूर उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है।
अंगूर के पोषक तत्व प्रति (100 ग्राम ) (Nutrients per 100 Grams of Grapes)
अंगूर में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होते हैं जो निम्न प्रकार है : –
- नमी- 82.2
- विटामिन सी : – 1.00
- कैलशियम : – 10 mg
- मैग्निशियम : – 7 mg
- रेशा : – 2.8 mg
- कार्बोहाइड्रेट : – 15.80 mg
- सोडियम : – 3.02 mg
- पोटेशियम : – 191 mg
- थायमीन : – 0.04 mg
- राइबोफ्लेविन : – 0.06 mg
- निकोटीनिक एसिड : – 0.10 mg
- फास्फोरस : – 19 mg
- लोहा : – 0.36 mg
- प्रोटीन : – 0.7 mg
Angur ki kheti का वानस्पतिक वर्णन
अंगूर वाइटिस वंश के अंतर्गत आता है विश्व के अधिकांश अंगूर उत्पादक क्षेत्र में लगभग 90% वाइटिस विनीफेरा का प्रयोग किया जाता हैजबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में संकर किस्मों को अधिक उगाया जाता है।
* अंगूर एक प्रकार की बेल होती है जो 30 फीट तक लंबी हो सकती है।
* अंगूर की बेल की पत्तियाँ वैकल्पिक, ताड़ के आकार की, और हमेशा दाँतेदार होती हैं।
* अंगूर की बेल का फल एक बेर है जो लाल, हरा, काला या सफेद हो सकता है।
* अंगूर 6–300 के समूह में उगते हैं।
* आप अंगूर के फलों पर इसकी कई किस्मों में सफेद पाउडर की परत पा सकते हैं।
अंगूर की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारण (Factors Affecting the Climate of Grapes)
तापमान: अंगूर गर्म तापमान पसंद करते हैं, लेकिन वे तापमान की एक विस्तृत श्रृंखला को सहन कर सकते हैं। अंगूर उगाने के लिए आदर्श तापमान 15 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच है।
सूरज की रोशनी: अंगूर को प्रतिदिन कम से कम 6 घंटे धूप की जरूरत होती है।
वर्षा: अंगूर को प्रति वर्ष लगभग 600 से 1,000 मिमी वर्षा की आवश्यकता होती है। बहुत अधिक वर्षा अंगूरों को सड़ने का कारण बन सकती है, जबकि बहुत कम वर्षा अंगूरों को झुर्रीदार बना सकती है।
Angur ki kheti अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में सबसे अच्छी तरह उगते हैं जो कार्बनिक पदार्थों से भरपूर होती है 10 डिग्री से कम तापमान होने पर लताओं का विकास रुक जाता है।
अंगूर के लाभ (Benefits of Grapes)
- अंगूर खाने से रक्त साफ होता है।
- रक्त बढ़ता है।
- वीर्य वर्धक का भी काम करता है।
- हृदय के रोगियों के लिए अच्छा होता है।
- इसमें भरपूर मात्रा में मैग्नीशियम आयरन पोटेशियम सल्फेट होता है।
- फेफड़ों में जमा कफ भी यह साफ कर देता है।
- जी मिचलाना
- खांसी
- उल्टी पेशाब की रुकावट में इसका प्रयोग बहुत अधिक किया जाता है।
- इसके शरबत को अमृत्तुल्य माना जाता है।
- इसके अलावा यह टीवी
- कैंसर के रोगियों के लिए
- हार्ट अटैक बीमारी से भी बचाता है।
- अंगूर के प्रयोग से खून के थक्के बनने से भी रोकता है।
- यह दांत
- जोड़ों के दर्द
- बाल टूटना
- फोड़े फुंसिया में भी लाभ देता है।
- हड्डिया मजबूत करता है।
अंगूर के लिए मिट्टी का चुनाव (Selection of soil for Grapes)
अंगूर को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन ये अच्छी जल निकासी मटियार दोमट मिट्टी पसंद करते हैं जो कार्बनिक पदार्थों से भरपूर हो।
angur ki kheti करने के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का चयन करना चाहिए अंगूर को ऐसी मिट्टी की जरूरत होती है जो कार्बनिक पदार्थों से भरपूर होती है कार्बनिक पदार्थ मिट्टी की जल निकासी में सुधार करने में मदद करते हैं।
इसके अलावा यह अंगूर के लिए पोषक तत्व भी प्रदान करते हैं पीएच मान अंगूर की खेती के लिए 6:00 से 7:00 उपयुक्त माना जाता है यदि मिट्टी का पीएच मान बहुत कम है तो अंगूर पोषक तत्व लेने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। और यदि मिट्टी का पीएच मान बहुत अधिक हो जाता है तो अंगूर में रोगों के प्रति अधिक संवेदनशीलता आ जाती है।
अंगूर की खेती संबंधित है (Viticulture is related to)
angur ki kheti : से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी जो आपको पता होनी चाहिए यदि आपको अपनी मिट्टी के बारे में पता करना है कि यह अंगूर की खेती करने के लिए उपयुक्त है या नहीं इसके लिए आप मृदा प्रशिक्षण प्रयोगशाला में टेस्ट करा सकते हैं मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में आपकी मिट्टी का पीएच मान और आपकी मिट्टी में पोषक तत्व के स्तर को भी बता देंगे।
एक बार जब आप अपने अंगूरों के लिए मिट्टी चुन लेते हैं, तो आपको मिट्टी तैयार करनी होगी। मिट्टी को 12-18 इंच की गहराई तक जोता जाना चाहिए।
आपको मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ जैसे खाद भी मिलाना चाहिए। अंगूर को वसंत या पतझड़ में लगाया जाना चाहिए। अंगूरों को 6-8 फीट की दूरी पर लगाना चाहिए।
अंगूर की किस्में (Grape Varieties)
ताजे फलों के लिए
इन किस्मों को ताजे फल के रूप में खाया जाता है यह किस्मे मीठी तथा कम बीज वाली या बिना बीज वाली होती है जैसे परलेट ब्यूटी सीडलैस थम्पसन सीडलैस, अनाब ए शाही, डी लाइट , हिमराड़ , पंडरी साहबी तथा भोकरी इस वर्ग की प्रमुख किस्मे है।
किशमिश और मुनक्का के लिए
माध्यम से बड़े आकार के फल वाली उसने इस वर्ग में आती हैं उनका रंग हरित सफेद काला होता है जिसमें बीज भी उपस्थित होते हैं यह बीज वाले बड़े आकार के तथा अंगूर से बना उत्पाद मुनाफा कहलाता है।
जब भी छोटी बीज रहित किस्मो से तैयार उत्पाद किशमिश कहलाता है उच्च शर्करा प्रतिशत इन किस्मों का प्रमुख गुण होता है जैसे थम्पसन सीडलैस, सुल्तानिया रेड कोरीथ इस समूह की किस्में है।
रस के लिए
इस प्रकार की किस्मों का प्रयोग ताजे रस या उसकी बोतल बंदी में किया जाता है इस वर्ग में ब्यूटी सीडलेस अर्ली मस्कट।, बेंगलोर ब्लू , चैम्पियन तथा ब्लैक चम्पा किसने प्रमुख है।
शराब के लिए
अंगूर की खेती मुख्य रूप से मदिरा उत्पाद करने के लिए की जाती है भारत में अंगूर से बहुत सीमित मात्रा में शराब बनाई जाती है और इसके लिए अर्का कंचन ,अर्का श्याम, ब्यूटी सीडलैस, अर्ली मस्कट , किसने उपयुक्त मानी जाती है।
अंगूर का प्रसारण (Grape Propagation)
अंगूर का व्यावसायिक प्रसारण कठोर काष्ठीय कलम द्वारा किया जाता है उत्तरी भारत में कलम, जनवरी तथा दक्षिणी भारत में अक्टूबर में ली जाती है इसकी लंबाई 20 से 45 सेंटीमीटर होते हैं।
अंगूर का रोपण (Grape Planting)
angur ki kheti 90 x 90 x 90 सेंटीमीटर आकर के गड्ढे में 30 किलोग्राम गोबर की खाद 1 किलोग्राम सुपरफास्फेट 50 ग्राम सल्फेट ऑफ पोटाश 50 ग्राम मेलाथियान चूर्ण मिलाकर भर देते हैं आमतौर पर ओजस्वी लताओं को 2 x 2 मीटर पर रोपा जाता है।
रोपण के लिए 1 वर्ष पुरानी कलम का प्रयोग करना चाहिए उत्तर भारत में अंगूर को जनवरी माह में रोपा जाता है जबकि दक्षिण भारत में यह कार्य अक्टूबर-नवंबर तथा मार्च-अप्रैल में किया जाता है।
अंगूर में उर्वरक प्रबंध (Fertilizer Management in Grapes)
angur ki kheti 3 x 3 मीटर के अंतर पर रोपी गई लताओ को 75 किलोग्राम गोबर की खाद 1.25 किलोग्राम अमोनियम सल्फेट 2 किलोग्राम सुपरफास्फेट 0.8 किलोग्राम पोटेशियम सल्फेट प्रतिवर्ष देनी चाहिए।
इसमें के गोबर की खाद फास्फोरस तथा पोटेशियम की पूरी मात्रा छटाई के बाद जनवरी में दी जाती है नत्रजन की आधी – आधी मात्रा पुष्प खिलने से पहले मार्च में तथा फल लगने के बाद अप्रैल में देते हैं।
अंगूर में जस्ते की कमी हो जाने पर लिटिल लीफ या रोजेट विकार पैदा होता है इसमें पत्तियां हरीमाहीन हो जाती है इसकी कमी पूरा करने के लिए 3 किलोग्राम जिंक सल्फेट तथा 1.5 किलोग्राम चुना को 450 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कना चाहिए।
अंगूर में सिंचाई (Irrigation in Grapes)
अंगूर पानी से प्यार करने वाली फसल है और बढ़ते मौसम के दौरान पानी की लगातार आपूर्ति की जरूरत होती है। आवश्यक पानी की मात्रा जलवायु, अंगूर की किस्म और लताओं की उम्र के आधार पर अलग-अलग होगी।
अंगूर को प्रति सप्ताह लगभग 1 इंच पानी की आवश्यकता होती है। उत्तरी भारत में फरवरी के बाद 7- 10 दिन के अंतराल पर सिचाई की आवश्कता होती है | वाष्पीकरण से बचने के लिए सुबह जल्दी या देर शाम को पानी देना चाहिए।
पादप नियंत्रको का प्रयोग (Use of Plant Controllers)
पादप नियंत्रक का प्रयोग अंगूर में गुछों का विरलीकरण, फलों का विरलीकरण, आकर्षक रंग तथा समान रूप से पकने के लिए किया जाता है 50-60 पीपीएम जिब्रेलिक एसिड का घोल फलों के आकार एवं गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
आकर्षक रंग प्राप्त करने के लिए 250 पीपीएम इथेफान के घोल का प्रयोग रंग फुटाव के समय किया जाना लाभकारी होता है।
अंगूर की उपज (Grape Yield)
भारत में angur ki kheti का औसतन उत्पादन 30 टन प्रति हेक्टेयर होता है जो विश्व में सर्वाधिक है अंगूर 6.5 से 7.0 के पीएच के साथ अच्छी तरह से सूखा, उपजाऊ मिट्टी पसंद करते हैं। मिट्टी जो बहुत अधिक रेतीली या बहुत चिकनी है, वे अंगूरों को वे पोषक तत्व प्रदान करने में सक्षम नहीं होंगी।
जिनकी उन्हें ठीक से बढ़ने के लिए आवश्यकता होती है। अनाब ए शाही ने हैदराबाद में 79.04 टन प्रति हेक्टर की अधिकतम उपज दी है और चीमा साहिबी से 91 . 39 टन प्रति हेक्टर की सर्वाधिक उत्पादन बारामती में प्राप्त हुई है।
अंगूर का भंडार (Grape Store)
अंगूर का भंडार करने के लिए ग्रहों में जीरो डिग्री से 90% आपेक्षित आद्रता का होना जरूरी है अंगूर को 30 से 45 दिन तक भंडारित किया जा सकता है।
निष्कर्ष: –
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