भिंडी के पौधे की देखभाल कैसे करें In Hindi

इस आर्टिकल में भिंडी के पौधे की देखभाल कैसे करें, बहुत ही आसान भाषा में जानकारी दी गई है यदि आपने अपने खेत में भिंडी की बुवाई की है या आप भिंडी की खेती से अधिक पैदावार लेना चाहते हैं तो आपको यह आर्टिकल जरूर पढ़ना चाहिए। यह आपकी भिंडी की पैदावार बढ़ाने में मददगार साबित होगा भिंडी की खेती करते समय विभिन्न प्रकार की परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है इसीलिए यह जानकारी आपको दिल्ली की खेती में मदद जरूर करेगी तो आईए जानते हैं भिंडी के पौधे की देखभाल कैसे करें In Hindi

भिंडी का पौधा उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में बारहमासी होता है क्योंकि यह क्षेत्र भिंडी का मूल निवास है इसके वयस्क पौधे की लंबाई 6 से 8 फीट की होती है इसके पौधे पर पीले या सफेद रंग के फूल आते हैं जिसके बीच में अक्सर बैंगनी रंग पाया जाता है फसल में जितने अधिक फूल आते हैं उतने अधिक फल बनते हैं इसलिए फूलों की देखभाल बहुत जरूरी हो जाती है इसके बीज सफेद और गोल आकार में होते हैं।

भिंडी को लेडी फिंगर या भिंडी के नाम से जाना जाता है यह मलवेसी कुल का पौधा है इसकी खेती पूरे वर्ष की जा सकती है यदि आप इसकी खेती से अधिक उत्पादन लेना चाहते हैं तो जहां पर सूर्य की रोशनी ज्यादा पड़ती हो वहां पर इसके पौधों की रोपाई करनी चाहिए।

भिंडी के पौधे की देखभाल कैसे करें In Hindi

भिंडी की खेती से अच्छी पैदावार लेने के लिए भिंडी के पौधे की देखभाल कैसे करें यह जानना भी जरूरी है अन्यथा आपकी मेहनत और लागत दोनों ही बेकार हो सकती है भिंडी के पौधों की देखभाल करते समय नीचे बताई गई बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है इन बातों का ध्यान रखें आप अपने खेत में भिंडी के पौधे की देखभाल आसानी से कर सकते हैं।

  • भिंडी के पौधों की रोपाई बसंत ऋतु में करना सबसे अच्छा रहता है इस समय पर पौधों की रोपाई करने से पौधों का विकास अच्छा और पैदावार में बढ़ोतरी होती है।
  • भिंडी के बीज को खेत में बोने से पहले 24 घंटे के लिए पानी में भिगोकर रखना चाहिए क्योंकि इसके बीज के ऊपर एक कठोर कवच होता है ऐसा करने से बीज नरम होकर जल्दी अंकुरित हो जाता है।
  • भिंडी के पौधों को वहां पर उगाना चाहिए जहां सूर्य की पूरी तरह से रोशनी 6 से 8 घंटे के लिए रहती हो ऐसी जगह पर पौधे लगाने से पौधे मजबूत और अधिक फल देने वाले होते हैं।
  • इसकी खेती के लिए उपजाऊ और नम तथा जल निकास वाली मिट्टी अच्छी रहती है।
  • इसके बीजों की बुवाई 1 इंच गहराई पर की जाती है या मिट्टी में छेद करके उसके अंदर बीज डालकर ऊपर से मिट्टी डाल दी जाती है।
  • भिंडी के बीज की बुवाई करने के दसवें दिन से 20वें दिन के बीच आवश्यकता अनुसार सिंचाई जरूर करनी चाहिए
  • एक छेद में एक ही बीज डालना चाहिए अन्यथा पौधों का विकास अच्छा नहीं हो पता है तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 3 फीट रखनी चाहिए।
  • भिंडी की खेती करने से पहले खेत की मिट्टी की जांच अवश्य करा लेनी चाहिए और मिट्टी का पीएच मान 6 से 6.8 के बीच थोड़ा अम्लीय अवस्था में तथा जल निकास वाली मिट्टी के साथ अच्छा रहता है।
  • भिंडी की खेती में अधिक मात्रा में पानी नहीं देना चाहिए किंतु मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।
  • भिंडी की खेती में सप्ताह में एक बार 1 इंच पानी की आवश्यकता होती है।
  • भिंडी की खेती करने के लिए गर्म जलवायु उपयुक्त होती है यदि भिंडी की खेती सर्दी के मौसम में की जाए तो फासले खराब होने का खतरा बना रहता है और उत्पादन भी कम होता है जबकि गर्मी वाली भिंडी की फसल में पौधों का विकास अच्छा और पैदावार भी ज्यादा प्राप्त होती है।
  • भिंडी की खेती में विभिन्न प्रकार के किट का प्रकोप होता है क्योंकि भिंडी की फसल कट को आकर्षित करती है इसलिए भिंडी की फसल में कीट को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती होता है। यदि आपके खेत में कोई भी कीट दिखाई दे तो तुरंत उसके उपचार के लिए कदम उठाना चाहिए वरना बाद में इनको नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है।
  • भिंडी की फसल में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का प्रकोप भी होता है इसलिए फसल चक्र के साथ रोग प्रतिरोधी किस्मो का चुनाव करके भिंडी की खेती करनी चाहिए।
  • भिंडी की कटाई तब करनी चाहिए जब इसकी फलों की लंबाई 10 से 15 सेंटीमीटर और फलों की अवस्था मुलायम हो यदि भिंडी का फल कड़ा हो जाता है तो बाजार में इसकी कीमत अच्छी नहीं मिलती है इसलिए सही समय पर फलों की तुड़ाई करनी चाहिए। इसलिए 7 दिन से पहले ही भिंडी की तुड़ाई कर लेनी चाहिए
  • मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए आप मल्चिंग या घास फूस का भी प्रयोग कर सकते हैं।
  • भिंडी की खेती में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए 15 से 20 दिन के अंतराल पर निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए।
  • खरपतवार निकलते समय ध्यान रखें की भिंडी के पौधे की जड़ों को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए।
  • बीज बोने के 10 से 15 दिन के बाद कुछ खाद का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

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