चकोरी की खेती की जानकारी | chakori ki kheti | chicory in hindi

आज हम आपको चकोरी की खेती (chakori ki kheti ) की जानकारी देने जा रहे हैं जिसमें आपको हम बताएंगे कि चकोरी (chicory) को हिंदी में क्या कहते हैं इसके उपयोग, भूमि, खेत की तैयारी, बुवाई का तरीका, जलवायु, बुवाई का समय, सिंचाई, उर्वरक, कटाई और कमाई, आदि.

chicory का हिंदी अर्थ (कासनी) है चकोरी (कासनी) की खेती कम खर्चे में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है इसलिए आलू की खेती को छोड़कर अब लोग चकोरी की खेती ज्यादा करने लगे है क्योंकि इस को स्टोर करने और बेचने में कोई परेशानी नहीं आती है.

चकोरी की खेती की जानकारी

यह एक नकदी फसल है इसको अनेक नामों से पुकारा जाता है जैसे चकोरी, चिकरि,  (कासनी) आदि भारतवर्ष में चकोरी की खेती मुख्य रूप से उत्तराखंड, पंजाब, कश्मीर और उत्तर प्रदेश में की जा रही है यदि आप भी चकोरी की खेती (chakori ki kheti ) करना चाहते हैं तो इस लेख में आपको चकोरी की खेती की संपूर्ण जानकारी दी जा रही है.

चकोरी के फायदे

  1. यह बारहमासी पौधा है.
  2. इससे कॉफी तैयार की जाती है.
  3. भूख की कमी को दूर करता है.
  4. पेट की ऐंठन को कम करता है.
  5. कब्ज की समस्या को दूर करता है.
  6. दिल के मरीजों के लिए यह रामबाण का काम करता है.
  7. इसका प्रयोग पशुओं को हरे चारे के रूप में किया जाता है.
  8. पशुओं के दूध उत्पादन को बढ़ाता है.
  9. इसका प्रयोग कैंसर जैसी भयानक बीमारी में किया जाता है.
  10. इसकी जड़ों का व्यापार किया जाता है.
  11. इसके पाउडर का प्रयोग कॉफी और बिस्कुट बनाने के लिए किया जाता है.

भूमि

चकोरी की खेती (chakori ki kheti ) करने के लिए भूमि को समतल रखना चाहिए क्योंकि ऊंची नीची भूमि होने पर खेत में जलभराव हो जाता है क्योंकि यह फसल जलभराव को सहन नहीं कर पाती है इसकी खेती करने के लिए पीएच मान सामान्य उचित होता है. चकोरी की बुवाई करने के लिए बीजो की रोपाई अगस्त के महीने में करनी चाहिए।

खेत की तैयारी

पहले खेत में हल्की जोताई करके पुरानी फसलों के अवशेषों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए इसके बाद मिट्टी पलटने वाले हेलो से गहरी जुताई करनी चाहिए इसके बाद खेत को धूप में कुछ समय के लिए खुला छोड़ देते हैं जिससे सभी प्रकार के हानिकारक जीव मर जाते हैं.

इसके बाद पुरानी गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए कल्टीवेटर के माध्यम से 2 से 3 तिरछी जुताई करनी चाहिए और रोटावेटर की सहायता से दलों को नष्ट करके मिट्टी को भुरभुरी कर लेना चाहिए इसके बाद खेत को समतल करके क्यारी बना लेते हैं.

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बुवाई का तरीका

इस फसल की बुवाई बरसीम की फसल की तरह की जाती है खेत में पानी लगाने के बाद खाद और बीज को एक साथ मिला लेते हैं और इसके बाद खेत में छिड़काव कर देते हैं इस विधि का प्रयोग हरे चारे के उद्देश्य से किया जाता है.

यदि आप (chakori ki kheti ) व्यापारिक उद्देश्य के लिए बीजों की बुवाई करना चाहते हैं तो आपको अधिक दूरी पर इसकी बुवाई करनी चाहिए दानों को छिड़कने के बाद उन्हें हल्के हाथ से मिट्टी में मिला देना चाहिए इसके बीजों की गहराई लगभग 2 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए क्योंकि अधिक गहराई पर इसमें अंकुरण कम होता है.

जलवायु

चकोरी की खेती(chakori ki kheti ) शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों जलवायु में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है भारतवर्ष में इसकी खेती सबसे ज्यादा उत्तरी भारत के राज्यों में होती है इसकी खेती के लिए अधिक गर्मी अच्छी नहीं होती है जबकि सर्दियों में इसका विकास बहुत अच्छा होता है.

चकोरी खेती के लिए पौधे को 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान पौधों के लिए अच्छा माना जाता है और फसल के पकने के समय पौधों को 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उचित रहता है.

सिंचाई

पहली सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए उसके बाद बीजों के अंकुरण होने के समय हल्की सिंचाई करनी चाहिए 30 दिन बाद सिंचाई करते समय 50 किलो यूरिया 1 किलो पोटाश का प्रयोग करने से अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं हरे चारे की फसल के लिए 5 से 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।

खाद एवं उर्वरक

चकोरी की खेती (chakori ki kheti ) के लिए जय खाद के रूप में लगभग 12 से 15 गाड़ियां पुरानी गोबर की खाद को मिट्टी में मिला देना चाहिए इसके बाद खेत में पानी लगा देते हैं रासायनिक खाद के रूप में यूरिया 50 किलो प्रति एकड़ और डीएपी 50 किलो प्रति एकड़ और 50 किलो पोटाश प्रति एकड़ देना चाहिए।

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चकोरी के पत्तों को तोड़ना

चकोरी के निचले पत्तों में अधिक दूध की मात्रा पाई जाती है जो दुधारू पशुओं के लिए दूध बढ़ाने का काम करते हैं आप बड़े पत्तों को तोड़कर पशुओं को खिला सकते हैं इससे पौधों को मिलने वाले पोषक तत्व चकोरी को बढ़ने में ताकत प्रदान करते हैं.

इसकी अच्छी बढ़वार करने के लिए आप सल्फर का भी प्रयोग कर सकते हैं इससे चकोरी की चमक भी बढ़ती है और पौधे भी स्वस्थ रहते हैं और रोगो से लड़ने की शक्ति मिलती है 05234 का प्रयोग करने से पत्तों के पीलेपन को जल्दी आने से रोका जा सकता है (पत्तों पर पीला रंग जल्दी नहीं आता है )

खरपतवार नियंत्रण

चकोरी की खेती (chakori ki kheti ) में खरपतवार ओं की समस्या जरूर आती है इसीलिए समय-समय पर खेत की निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए। पहली निराई गुड़ाई 25 से 30 दिन पर करनी चाहिए ऐसा करने से चकोरी के जड़ का साइज अच्छा बढ़ता है.

चकोरी की उन्नत किस्में

चकोरी की दो प्रमुख प्रजातियां उगाई जाती है जिनका प्रयोग अलग-अलग इस्तेमाल के लिए किया जाता है प्रथम प्रजाति जंगली और दूसरी व्यापारिक प्रजाति है.

जंगली प्रजाति

जंगली प्रजाति की चकोरी सामान्य रूप से पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग की जाती है इसकी पत्तियां स्वाद में कड़वी होती है. इसमें निकलने वाले कंद कम मोटे होते हैं इस प्रजाति का पौधा एक बार लगने के बाद कई बार कटाई देता है जिसका हम पशुओं को चारे के रूप में दूध बढ़ाने के लिए देते है.

व्यापारिक प्रजाति

इस प्रजाति को व्यापार करने के लिए उगाया जाता है इसका पौधा रोपाई के लगभग 140 दिन के बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाता है इस प्रजाति की जड़ों का स्वाद मीठा होता है.

के 1

इस प्रजाति के पौधे सामान्य ऊंचाई तक जाते हैं उनकी झड़े आकार में मोटी लंबी और मूली की तरह नोकीली पाई जाती है यह रंग में सफेद होती है इसके पौधे को सावधानी से उखाड़ना चाहिए क्योंकि इसकी जड़ें उखड़ते समय टूट सकती है.

के 13

यह प्रजाति हिमाचल प्रदेश में अधिक उगाई जाती है इसकी जड़े आकार में बड़ी और गठी हुई होती है इसके गूदे का रंग भी सफेद होता है तथा इसकी जड़े कम टूटती है इसलिए इनका उत्पादन अच्छा होता है.

चकोरी के उत्पादन को बढ़ाने के उपाय

  1. सही किस्म का चुनाव करना चाहिए।
  2. अच्छे से मिट्टी की तैयारी करनी चाहिए।
  3. इसको वसंत में लगाना चाहिए।
  4. समय पर पानी देना चाहिए।
  5. ज्यादा खाद का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  6. कीट और रोगों का समय पर उपचार करना चाहिए।
  7. इसकी खेती के साथ सब्जियों की खेती करना उपज को बढ़ाता है.
  8. समय पर निराई गुड़ाई करनी चाहिए।

इन युक्तियों का पालन करके आप अपने बगीचे में (कासनी) या चकोरी का उत्पादन बढ़ा सकते हैं और इस बहुमुखी फसल से कई लाभों का आनंद उठा सकते हैं.

कटाई

चकोरी की हरे चारे के लिए प्रथम कटाई 25 से 30 दिन पर की जाती है एक बार बोई गई फसल से लगभग 10 से 12 बार कटाई की जा सकती है जिससे किसानों को चारे की कमी नहीं रहती है यह फिर से 12 से 15 दिन में कटाई योग्य हो जाते है.

किकोरी के कंद की खुदाई बुवाई के लगभग 120 दिन के बाद की जानी चाहिए जिसके द्वारा लगभग 20 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन प्राप्त होता है और चकोरी की खेती (chakori ki kheti ) से लगभग 5 कुंटल तक बीज प्राप्त हो जाता है जिससे किसान कंद को बेचकर और दानों को बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

जैविक खेती के लाभ और हानि

चकोरी की खेती की जानकारी के FAQ

प्रशन: चकोरी का रेट क्या है?

उत्तर: चकोरी के कंद का बाजार में भाव लगभग ₹400 प्रति कुंटल होता है और बीजों का भाव लगभग ₹8000 प्रति कुंटल होता है.

प्रशन: चकोरी से क्या बनता है?

उत्तर: चकोरी एक बहु उपयोगी फसल है इसको सुखाकर और भूनकर पाउडर बनाया जाता है जो काफी में डालकर पिया जाता है इसका अचार, पशुओं के हरे चारे और प्याज के साथ सूखी सब्जी में भी प्रयोग किया जाता है |

प्रशन: भारत में चिकोरी कहां उगाई जाती है?

उत्तर: भारत में इसकी खेती उत्तरी राज्यों में की जा रही है ठंडे क्षेत्रों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है |

प्रशन: चकोरी क्या होती है?

उत्तर: चकोरी एक कम खर्च में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल इसका प्रयोग पशुओं के लिए हरे चारे रूप में दिया जाता है इसका पाउडर भी मनाया जाता है जो कॉफी में डालकर पिया जाता है |

निष्कर्ष : –

इस लेख में दी गई chicory in hindi : चकोरी की खेती की जानकारी 2023 आपको कैसी लगी और अपने सुझाव विचार या खेती से जुड़े किसी भी प्रकार के प्रश्न को हम से पूछना ना भूले और हमारा निवेदन है इस प्रकार की रोचक और लाभकारी जानकारी पढ़ने के लिए कृपया हमारी वेबसाइट agriculturetree.com विजिट जरूर करें {जय जवान जय किसान}

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