बरसात में करेले की खेती संपूर्ण भारत में की जाती है, इसका जन्म स्थान अफ्रीका एवं चीन माना जाता है बरसात के मौसम में करेले की बुवाई जून से जुलाई के बीच की जाती है इस आर्टिकल में करेले की खेती की संपूर्ण जानकारी विस्तार से दी गई है।
यह कुकुरबिटेसी कुल का पौधा है इसके फल तथा रस को दवाओं के लिए प्रयोग किया जाता है इसके फल को सब्जी के रूप में पकाकर फ्राई करके, करी, तथा कलाैजी के रूप में प्रयोग किया जाता है यह भारत में जंगली रूप में भी पाया जाता है इसलिए इसकी खेती करना बहुत आसान है।
करेले के लाभ
करेले में अनेक प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं जिसके कारण इसकी मांग वर्ष भर बनी रहती है.
- यह शुगर और डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान से कम नहीं है।
- इसमें विभिन्न प्रकार के विटामिंस एवं पोषक तत्व पाए जाते हैं।
- इसका सेवन त्वचा रोगों में बहुत ही लाभकारी होता है।
- यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
- यह पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है।
- पथरी रोगियों के लिए भी इसका सेवन लाभकारी है।
- इसका प्रयोग उल्टी और दस्त में भी किया जाता है।
- यह मोटापा कम करता है।
- यह खूनी बवासीर और पीलिया रोगियों के लिए दवाई का काम करता है।
- करेला एंटीऑक्सीडेंट का एक अच्छा स्त्रोत है।
- यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम करता है।
मिट्टी का चुनाव
करेले की खेती सभी प्रकार की भूमियों में आसानी से की जा सकती है लेकिन बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है इसकी खेती करने के लिए बरसात के मौसम में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए , जलोढ़ मिट्टी भी इसकी खेती के लिए अच्छी मानी जाती है करेले की खेती करने के लिए भूमि का पीएच मान 6 से 8 उचित माना जाता है।
जलवायु
यह एक गर्म जलवायु चाहने वाली सब्जी है गर्मियों के मौसम में इसकी पैदावार अच्छी होती है लेकिन हमारे द्वारा बताई गई जानकारी के द्वारा आप गर्मियों में और बरसात के मौसम में अच्छी पैदावार ले सकते हैं।
इसकी अच्छे पैदावार लेने के लिए 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान से लेकर 40 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के बीच पैदावार अच्छी होती है किंतु भूमि में नमी हमेशा बनी रहनी चाहिए।
करेले की उन्नत किस्में
यदि आप करेले की खेती में कम समय में अधिक पैदावार प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको उन्नत किस्मों का प्रयोग करना चाहिए आपको अपने क्षेत्र के अनुसार किस्मों का प्रयोग करना चाहिए करेले की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है –
- कल्याणपुर बारामासी
- हिसार सिलेक्शन
- पूजा विशेष
- कोयंबटूर लोंग
- अर्का हरित
- पूसा हाइब्रिड – 2
- पूसा औषधि
- पंजाब करेला-1
- पंजाब -14
- सोलन हरा
- सोलन सफेद
- कल्याणपुर सोना
- पूसा शंकर-1
- पूजा विशेष
- पूसा दो मौसमी
- प्रिया
- जौनपुरी
- फैजाबादी
- बारहमासी
- वीके-1
- विवेक
करेला की खेती का समय
करेले की खेती की बुवाई का समय साल भर रहता है क्योंकि यह के बारहमासी सब्जी की फसल है फिर भी उसकी बुवाई को 3 वर्गों में बांटा गया.
- ग्रीष्म ऋतु की फसल जनवरी से मार्च के बीच बुवाई की जाती है.
- वर्षा ऋतु की फसल जून से जुलाई के बीच बुवाई जाती है.
- पहाड़ी क्षेत्रों के लिए मार्च से जून के बीच बुवाई की जाती है.
बोने की दूरी
करेले की बुवाई करने से पहले खेती अच्छी तरह से जुताई कर लेने के बाद खेत को पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए क्यारियों की दुरी दो-दो फुट रखनी चाहिए एक से डेढ़ मीटर की दूरी पर बीजों की रोपाई करनी चाहिए और बीजों की गहराई 2.5 सेंटीमीटर में चाहिए।
नालियों के दोनों तरफ बनी मेड़ो की ढाल पर पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर की दूरी पर होनी चाहिए इस प्रकार की बोवाई से पौधों की सिंचाई सुचारू रूप से होती है और नालियों के बीच के स्थान पर इन्हे फैलने की अच्छी जगह मिल जाती है एक स्थान पर दो-तीन बीज बोना चाहिए।
बीज की मात्रा
करेले की बुवाई करने से पहले बीजों को बाविस्टिन (2 ग्राम प्रति किलो की दर से) के घोल में लगभग 20 से 24 घंटे तक भिगोके रखना चाहिए उसके बाद छाया में सुखा लेना चाहिए 6 से 7 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है।
करेले में सिंचाई
करेले की फसल में सिंचाई करने से पहले जल निकास की व्यवस्था करनी चाहिए क्योंकि जल निकास नहीं होने के कारण करेले की पूरी फसल खराब हो जाती है करेले को सिंचाई की कम आवश्यकता होती है खेत में नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई करनी चाहिए फूल और फल बनने की अवस्था में सिंचाई जरूर करनी चाहिए |
खरपतवार नियंत्रण
करेले की फसल में शुरुआत के दिनों में निराई गुड़ाई जरूर करनी चाहिए इससे पौधे का विकास अच्छा होता है अनावश्यक खरपतवार को खेत में से उखाड़ कर दूर फेंक देना चाहिए |
खेती के उपकरण
आज के नए दौर में कृषि उपकरणों के द्वारा खेती करना बहुत आसान हो गया है जिनका प्रयोग करके कम समय में और कम मेहनत करके आसानी से खेती कर सकते हैं जिससे हमारी फसल की पैदावार में वृद्धि होती है इसलिए हम आपको कुछ खेती के आवश्यक उपकरण बताने जा रहे हैं जिनका प्रयोग करके आप अपनी खेती को आसान बना सकते हैं –
जुताई के लिए उपकरण – इन उपकरणों का प्रयोग मिट्टी तैयार करने के लिए किया जाता है जैसे –
- कल्टीवेटर
- डिस्क हल
- डिस्क हैरो
- लैंड रोलर
- मोल्डबोर्ड हल
- रोटरी कुदाल
- छेनी वाले हल
- रोटरी टिलर
- फावड़ा
- सबसांइल हल
मिट्टी और बीज तैयार करने के उपकरण – इन उपकरणों का प्रयोग रोपण कार्य और बीज तैयार करने के लिए किया जाता है जैसे –
- रोटावेटर
- रोपण उपकरण
- बीज दम ड्रिल उर्वरक
- बीज उपचार ड्रम
- बुवाई उपकरण
बुवाई और रोपण उपकरण – इनका उपयोग बीज को बोने के लिए और पौधे को रोपने के लिए किया जाता है जैसे –
- हाथ कुदाल
- लंबे हैंडल वाली निराई मशीन
- स्वीप
- सीड ड्रिल
पौध संरक्षण उपकरण – इनका उपयोग पौधों की बीमारियों और कीटों से सुरक्षा के लिए किया जाता है जैसे –
- स्पेयर
- डस्टर
- फ्यूमिगेटर
अन्य उपकरण – इन उपकरणों के अलावा विभिन्न प्रकार के उपकरण करेले की खेती में प्रयोग किए जाते हैं जैसे –
- बॉस के खंबे
- तार
- रस्सी
- उर्वरक
- कीटनाशक
- हेडहेल्ड कीट कैचर
खाद एवं उर्वरक
करेले की खेती करने के लिए 20 से 25 टन गोबार या कंपोस्ट खाद तैयार करते समय मिट्टी में मिला कर देना चाहिए इसके साथ 60 किलोग्राम नत्रजन 50 किलोग्राम फास्फोरस 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए |
नत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेती तैयारी करते समय देनी चाहिए और नत्रजन की बची हुई आधी मात्रा बोने के एक से डेढ़ महीने बाद जड़ के पास टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए |
करेले की तुड़ाई
फलों की तुड़ाई मुलायम एवं छोटी अवस्था में ही कर लेनी चाहिए तुड़ाई बोने के 60 से 70 दिन बाद शुरू हो जाती है यह कार्य हर तीसरे दिन करना चाहिए करेले को तोड़ते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि डंठल की लंबाई 2 सेंटीमीटर से अधिक हो , करेले की तोड़ाई सुबह के समय करनी सबसे अच्छी रहती है |
करेले के उत्पादन को बढ़ाने के उपाय
करेले के उत्पादन को बढ़ाने के कुछ तरीके यहां दिए गए हैं:
- समय पर बुवाई करें।
- नमी को बनाए रखने के लिए नियमित सिंचाई करें |
- आवश्यकता अनुसार खाद एवं उर्वरक देना चाहिए |
- नियमित रूप से निराई गुड़ाई करके पौधों के आसपास के क्षेत्रों को खरपतवार से मुक्त रखें
- किसी भी प्रकार के कीट एवं रोग दिखाई देने पर जल्द से जल्द उपचार करना चाहिए |
- फलों की तुड़ाई समय पर और कोमल एव छोटी अवस्था में करनी चाहिए|
- बेलो को बांस या लोहे की जाली से सहारा देना चाहिए |
- नर फूलों पर फल नहीं लगते हैं इसीलिए उन्हें हटा देना चाहिए |
- नियमित कटाई करने से पौधे अधिक फल पैदा करते है |
- अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी का चुनाव करना चाहिए |
- मिट्टी थोड़ी क्षारीय होनी चाहिए |
- जलवायु और वातावरण परिस्थितियों के अनुसार सही किस्म का चुनाव करना चाहिए |
- फूलों की संख्या और फलों का आकार बढ़ाने के लिए पादप वृद्धि नियामकों का प्रयोग करना चाहिए |
करेले की खेती से संबंधित FAQ
प्रशन – करेला लगाने की विधि क्या है ?
उत्तर – करेला लगाने के लिए लाइन से लाइन की दूरी 2 मीटर रखी जाती है और पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर रखी जाती है |
प्रशन – बरसात में करेले की खेती कब करे ?
उत्तर – बरसात में करेले की खेती जून से जुलाई के बीच में की जाती है |
प्रशन – करेले के बीज की कीमत क्या है ?
उत्तर – करेले के 1 पैकेट (4 ग्राम) कीमत अमेज़न पर 75 रूपए है |
प्रशन – करेले की कौन सी किस्म सबसे अच्छी है?
उत्तर – करेले की पूसा हाइब्रिड-1 किस्म तीनो ऋतू में की जा सकती है वसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु तीनों मौसम में बोई जाती है ये किस्म उत्तरी मैदानी भागो के लिए उपयुक्त होती है |
निष्कर्ष : –
आज आपने जाना कि बरसात में करेले की खेती कैसे और कब की जाती है इस लेख में करेले की खेती की संपूर्ण जानकारी आपको अच्छी लगी होगी फिर भी अगर कोई जानकारी हमसे छूट गई हो तो आप हमें नीचे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं और हां अपने दोस्तों के साथ इस लेख को शेयर करना ना भूले | धन्यवाद |
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