सब्जी वाली मटर की खेती | Pea Farming In Hindi | Matar ki Kheti 2024

सब्जी वाली मटर की खेती | matar ki kheti: आज हम आपको इस पोस्ट में सब्जी वाली मटर की खेती की उन्नत तकनीक के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके द्वारा आप सब्जी वाली मटर की खेती करके अधिक मुनाफा कमा सकते हैं तो आइए जानते हैं।

भारतवर्ष में मटर सब्जी और दाल दोनों के लिए प्रयोग की जाती है सब्जी वाली मटर की खेती ( matar ki kheti ) का उपयोग मुख्यतः सब्जी बनाने में किया जाता है जबकि दाल वाली मटर का उपयोग प्रमुख रूप से दाल बनाने में किया जाता है इसमें कार्बोहाइड्रेट तथा विटामिन के साथ-साथ प्रचुर मात्रा में प्रोटीन भी पाया जाता है इसमें अनेक प्रकार के खनिज भी पाए जाते हैं जिसके बारे में हम आगे बात करेगे मटर की खेती कम समय और कम लागत में तैयार की जा सकती है।

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मटर की खेती सबसे ज्यादा कहां होती है (Where is Peas Cultivated the Most)

भारत में यह उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश हिमाचल प्रदेश पंजाब हरियाणा राजस्थान महाराष्ट्र बिहार तथा कर्नाटक में पर्याप्त क्षेत्र में उत्पन्न की जाती है इसकी सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में 4.34 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में मटर की खेती की जाती है जबकि पश्चिम बंगाल दूसरे नंबर पर आता है मटर रबी मौसम में उगाई जाने वाली फसल है।

सब्जी वाली मटर की खेती ( matar ki kheti ) सर्दियों में प्रमुख रूप से की जाती है यह एक दलहनी फसल है सब्जी वाली मटर बाजार में उचित दाम पर बिकने के काम आती है तथा इसके अलावा इसके दोनों को सुखाकर दो भागों में करके दाल बना कर भी बेचा जाता है और घर पर प्रयोग किया जा सकता है सर्दियों में मटर की बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है।

मटर के पोषक तत्व (per 100 mg खाने योग्य भाग )

  • मटर के दाने में नमी – 72 ग्राम
  • वसा – 00.1 ग्राम
  • रेशा – 0.4.0 ग्राम मिलीग्राम
  • कैलोरी – 93
  • मैगनीशियम – 34 मिलीग्राम
  • फास्फोरस – 139 मिलीग्राम
  • सोडियम – 7. 8 मिलीग्राम
  • कॉपर – 23 मिलीग्राम
  • विटामिन ए – 83 आई यू
  • राइबोफ्लेविन – 0.01 मिलीग्राम
  • प्रोटीन – 7.2 ग्राम
  • खनिज पदार्थ – 8 ग्राम
  • कार्बोहाइड्रेट – 15.9 ग्राम
  • कैल्शियम – 20 मिलीग्राम
  • आक्जैलिक अम्ल – 14 मिलीग्राम
  • लोहा – 01.5 मिलीग्राम
  • पोटाशियम – 79 मिलीग्राम
  • सल्फर – 95 मिलीग्राम
  • थियामिन – 0.25 मिलीग्राम
  • विटामिन सी – 9.0 मिलीग्राम

मटर की खेती से अन्य लाभ (Other Benefits From Pea Farming)

सब्जी वाली मटर की खेती ( matar ki kheti ) करने से मटर और दाल के अलावा कुछ अन्य लाभ भी प्राप्त होते हैं जैसे पशुओं के लिए हरे एक चारे की व्यवस्था हो जाती है इंधन की प्राप्ति होती है इसकी खेत में बुवाई करने पर नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया सुचारू रूप से होती है और खेत की उर्वरता में वृद्धि होती है यह मृदा संरक्षण के रूप में काम करती है इसलिए मटर की खेती हमें जरूर करना चाहिए।

(Matar ki Kheti) लिए मिट्टी

सब्जी वाली मटर की खेती ( matar ki kheti ) करने के लिए बलुअर दोमट से चिकनी मिट्टी में से किसी भी प्रकार की भूमि पर यह आसानी से उगाई जा सकती है किंतु इसके लिए अच्छे जल निकास की उचित व्यवस्था करनी पड़ती इसके भुरभुरी दोमट मिट्टी भी उपयुक्त होती है।

इसकी खेती करने के लिए उपयुक्त पीएच मान 6 से 7.5 होना चाहिए और मिट्टी की 3 से 4 बार अच्छी तरह से जुताई की जानी चाहिए | अच्छे अंकुरण होने के लिए खेत में नमी का होना बहुत जरूरी है।

मटर की खेती कब करें (When to cultivate Peas)

मटर की बुवाई मैदानी भागों में अक्टूबर से नवंबर तक की जाती है जबकि पर्वतीय क्षेत्रों पर इसकी बुवाई मार्च से मई के बीच में की जाती है और शरद ऋतू में इसकी दूसरी फसल भी ली जा सकती है।

अगर मटर की अगेती किस्मों की बात करें तो यह सितंबर महीने में होनी चाहिए और पछेती किस्मत की बात करें तो यह नवंबर महीने के मध्य तक बो देनी चाहिए |

मटर के लिए बीज की मात्रा (Seed Quantity for peas)

शीघ्र बोने वाली फसलों के लिए 100 से 120 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टर पर्याप्त होता है जबकि मध्य या देर से होने वाली फसलों के लिए 80 से 90 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है मटर की बुवाई करने से पहले बीज को केप्टान या थीरम 3 ग्राम या कार्बेंडाजिम 2.5 ग्राम से प्रति किलोमीटर में उपचारित करना चाहिए |

जिससे फसल के उत्पादन में लगभग 10 से 15% की बढ़ोतरी हो जाती है इसके अलावा स्पेरगन या ऐरासन द्वारा भी उपचारित किया जा सकता है और अगर उपलब्ध हो तो बैक्टीरियल कल्चर से उपचारित करना बहुत लाभकारी होता है।

मटर में कौन सी खाद डालना चाहिए (Which Fertilizer Should be Applied in Peas)

25 किलोग्राम नत्रजन 70 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेर के हिसाब से बोने के समय मिट्टी में मिलाना चाहिए अच्छी पैदावार के लिए 20 टन गोबर की खाद भी डालनी चाहिए यदि डीएपी की बात करे तो प्रति हेक्टेयर लगभग 100 से 125 किलोग्राम देनी चाहिए।

बोने की दूरी (Sowing Distance)

मटर में लाइन से लाइन की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर रखी जाती है जबकि पौधे से पौधे की दुरी चार से पांच सेंटीमीटर रखी जाती है इसकी बुवाई लगभग 5 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण (Weed control)

मटर में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए एम सी पी बी को 600 लीटर पानी में घोलकर बोने के 30 से 35 दिन बाद प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए इसके अलावा मटर के पौधे पर दो से तीन पत्ते आने के बाद पहली निराई गुड़ाई कर देनी चाहिए और दूसरी निराई गुड़ाई फूल निकलने से कुछ दिन पहले कर देनी चाहिए।

मटर में सिंचाई कब करें (When to irrigate peas?)

मटर में प्रथम सिंचाई फूल आने के समय तथा दूसरी सिंचाई दाना बनने के समय की जाती है किसान भाई इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि खेत में हल्की सिंचाई की जानी चाहिए।

अन्यथा जलभराव की समस्या का सामना करना पड़ सकता है जो मटर की खेती के लिए हानिकारक होता है मटर की बुवाई करने से पहले सिंचाई करना बहुत जरूरी होता है क्योंकि इसकी बुवाई करने के लिए नमी की आवश्यकता पड़ती है।

मटर की कटाई कब और कैसे करें (When And How to Harvest Peas)

मटर की कटाई उचित अवस्था पर करनी चाहिए जब मटर की फली का रंग गहरा हरा हो तब तुड़ाई करनी चाहिए तुड़ाई में देरी करने से इनके गुण में कमी आ जाती है तुड़ाई सावधानी से करनी चाहिए जिससे कि पौधों को हानि ना हो | मटर की फसल में 7 से 10 दिनों के अंतराल पर लगभग 4 से 5 बार तुड़ाई की जा सकती है।

मटर की पैदावार कितनी होती है (What is the Yield of Peas?)

मटर ( matar ki kheti ) की शीघ्र तैयार होने वाली प्रजातियों की उपज की बात करें तो लगभग 30 से 40 कुंटल हरी फली वाली प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है जबकि मध्य और देर से तैयार होने वाली प्रजातियों की बात करें तो इनकी उपज 60 से 70 कुंटल फली प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है पूरे भारतवर्ष में मटर का उत्पादन 8.3 लाख टन/ हेक्टर होता है।

मटर का भंडारण कैसे करें (How to Store Peas)

मटर ( matar ki kheti ) की ताजी बिना छिली हुई फली को 90-95% सापेक्ष आद्रर्ता के साथ जीरो डिग्री सेंटीग्रेड पर 2-3 सप्ताह के लिए भंडारण किया जा सकता है जबकि मटर के बीज को धूप में सुखाकर जब उसमें 8-10% नमी रह जाए उसके बाद बीज भंडारण करके 1-2 वर्ष तक आसानी से लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

मटर की कीट

माहू कीट (aphid insect)

माहू कीट पौधे के रस को चुस लेता है जिसके कारण पौधा पीला पड़ जाता है और मुरझा जाता है यह पौधों के विकास में बाधा डालता है यह वायरस को बढ़ावा देता है और इसके के कारण उपज में भारी कमी आ जाती है इसलिए इसकी रोकथाम करना बहुत जरूरी होता है।

लीफ माइनर (leaf miner)

लीफ माइनर मंक्खी चमकीली होती है यह गहरे हरे रंग की या काले रंग की होती है इसके पंखों के किनारों पर पीले निशान पाए जाते हैं लीफ माइनर की सुंडिया पत्ती में पतली पतली सुरंग बनाकर और फलियों में सुराख़ बनाकर दाने खाकर फसल को नुकसान पहुंचाती है।

रोकथाम- लीफ माइनर एव माहू कीट की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर 1 मीटर रोगोर 30 ई सी या 0. 25 लीटर मैटासिस्टाक्स 25 ई सी 625 लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए।

तने की मक्खी (Stem fly)

इसकी मक्खियां पत्तियों पर अंडे देती है जिसमें गिडारे निकलकर तने को खाती रहती है और नीचे की ओर बढ़ती है तथा पौधा पीला पढ़कर सूख जाता है यह तने में छेद करके नुकसान पहुंचाते हैं।

रोकथाम- इस किट के हमले को रोकने के लिए मध्य अक्टूबर से पहले बुवाई करना नहीं चाहिए जिस शाखा पर इसका प्रभाव देखें उसको काट देना चाहिए फुलते समय 1 प्रतिशत रोटेनान का बुरकाव मक्खी के दिखाई देने पर तुरंत कर देना चाहिए आवश्यकता पड़ने पर 15 दिन के अंतराल पर दूसरा बुरकाव भी कर सकते हैं।

मटर के रोग

विल्ट रोग (Wilt disease)

मटर ( matar ki kheti ) में रोग के कारण प्रभावित पौधों की निचली पत्तियां पीली पड़ने लगती है पौधों के तने के रंग बदरंग दिखाई देता है जिस पौधे में यह रोग लगता है उसमें फलिया कम बनती है।

रोकथाम- इस रोग की रोकथाम करने के लिए बीजों को बावस्टिन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए और रोगरोधी किस्मों का प्रयोग करना चाहिए फसल में ज्यादा सिंचाई नहीं करनी चाहिए।

सफेद चूर्णी फफूंद रोग/पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew)

यह मटर का एक सबसे ज्यादा हानि पहुंचाने वाला रोग है इसमें जीवाणु मृदा में तथा जंगली पौधों की पत्तियों पर रहते हैं और बाद में यह वातावरण में मिलकर रोग को फैलाते हैं।

इसमें छोटे-छोटे सफेद चूर्णी धब्बे के रूप में पत्तियों पर दिखाई देते हैं जो संख्या में अधिक होते हैं और धीरे-धीरे बड़े होकर एक दूसरे में मिल जाते हैं रोगग्रस्त पौधे की टहनिया पर जो फलिया आती है वह बहुत छोटी और सिकुड़ जाती है फलिया पकने से पहले ही नीचे गिर जाती है।

रोकथाम- इसमें रोग ग्रस्त पौधों को जला देना चाहिए और रोगरोधी किस्मों को बोना चाहिए और फसल पर रोक के लक्षण दिखाई देने पर 01% बेनलेट या बावस्टिन या केरेथन के घोल का छिड़काव किया जाता है यह छिड़काव 10 से 12 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।

जीवाणु झुलसा रोग (Bacterial Blight Disease)

मटर की खेती ( matar ki kheti ) में जीवाणु झुलसा रोग में पौधे के सभी ऊपरी हिस्सों पर जलसिक्त धब्बे दिखाई देते हैं यह धब्बे पीले रंग के होते हैं और बाद में भूरे पड जाते है और पपड़ी में बदल जाते हैं।

रोकथाम- इसकी रोकथाम करने के लिए स्वास्थ्य और रोगरहित बीज का प्रयोग करना चाहिए फसल में ज्यादा सिंचाई नहीं करनी चाहिए जल निकासी का उचित प्रबंध करना चाहिए खरपतवार समय-समय पर निकालते रहना चाहिए रोगग्रस्त पौधों को शुरू में ही निकलकर अलग कर देना चाहिए।

निष्कर्ष : –

हम आशा करते हैं कि आपके समक्ष प्रस्तुत किए गये लेख सब्जी वाली मटर की खेती | matar ki kheti जानकारी को पढ़ने के बाद आपको अच्छी लगी होगी अच्छी लगी हो तो इसे अपने मित्रों के साथ साझा जरूर करें।

और साथ ही अपने सुझाव विचार या खेती से जुड़ी किसी भी प्रकार के प्रश्न को कमेंट में पूछना ना भूले खेतीबाड़ी से जुड़ी इस प्रकार की रोचक लाभकारी पोस्ट पढ़ने के लिए कृपया हमारी वेबसाइट  agriculturetree.com जरूर विजिट करें, धन्यवाद { जय जवान जय किसान }

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