Mulching kya Hai: मल्चिंग के प्रकार बताइए | जाने खेती में मल्चिंग के क्या फायदे है

Mulching kya hai: मल्चिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पौधों के चारों ओर मिट्टी को किसी प्राकृतिक या कृत्रिम पदार्थ से ढक देते हैं मिट्टी को ढकने की इस प्रक्रिया को ही मल्चिंग कहते हैं यह खेती के लिए बहुत लाभकारी होती है आजकल के दौर में मल्चिंग कहीं-कहीं देखने को मिलती है क्योंकि ज्यादातर किसान इसका उपयोग नहीं करते हैं जबकि यह खेती के लिए बहुत लाभकारी होती है मल्चिंग करने से मिट्टी की नमी सुरक्षित रहती है तथा खरपतवार की समस्या नहीं होती है मल्चिंग के द्वारा मिट्टी के तापमान को नियंत्रित किया जा सकता है आईए जानते हैं कैसे मल्चिंग आपकी खेती के लिए सुरक्षा कवच का काम करती है।

हमारे देश के किसान काफी समय से पलवार या मल्चिंग का इस्तेमाल तो कर रहे हैं किंतु इनकी संख्या कम है ज्यादातर किसान प्राकृतिक सामग्री जैसे पेड़ के पत्ते घास फूस फसलों के बचे अवशेष से ही मल्चिंग करते है

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मल्चिंग क्या है (Mulching kya Hai)

खेती करते समय किसानों को खरपतवार और सिंचाई की समस्या बहुत अधिक होती है इनके कारण किसानों का खर्चा भी बढ़ जाता है इस समस्या से निजात पाने के लिए नई तकनीक विकसित की गई है जिसका नाम मल्चिंग रखा गया है इस विधि में बेड को प्लास्टिक से पूरी तरह ढक दिया जाता है जिस खेत में पर्याप्त नमी बनी रहती है और खरपतवार नहीं उगते हैं जब हम जमीन को चारों तरफ से प्लास्टिक कर द्वारा ढक देते हैं इस क्रिया को प्लास्टिक मल्चिंग कहते हैं।

मल्चिंग के प्रकार (Types of Mulching)

मल्चिंग दो प्रकार की होती है एक होती है जैविक मल्चिंग और दूसरी होती है अजैविक मल्चिंग दोनों प्रकार की मल्चिंग खेती करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है जैविक मल्चिंग में किसी प्रकार का कोई खर्च नहीं आता है जबकि अकार्बनिक मल्चिंग में कुछ खर्च आ सकता है।

  1. प्राकृतिक मल्चिंग 
  2. प्लास्टिक मल्चिंग (अकार्बनिक मल्चिंग)

प्राकृतिक मल्चिंग क्या है (Mulching kya hai) – जैविक मल्चिंग एक प्राकृतिक मल्चिंग है क्योंकि इसको करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग किया जाता है जैसे पेड़ों की छाल, पेड़ों के पत्ते, घास फूस, पेड़ पौधों की शाखा, लकड़ी का छिलका आदि इसका उपयोग जीरो बजट खेती में किया जाता है यदि आप प्राकृतिक तरीके से मल्चिंग करना चाहते हैं तो पराली को जलने के बजाय अपने खेत में मल्चिंग करने में इसका उपयोग कर सकते हैं।

प्लास्टिक मल्चिंग (अकार्बनिक मल्चिंग) (Mulching kya hai) – हर समय और सभी जगह प्राकृतिक मल्चिंग करना संभव नहीं होता है इसलिए बाजार में प्लास्टिक मल्चिंग आसानी से मिल जाती है यह जैविक मल्चिंग की तुलना में खर्चीली होती है लेकिन खेती को पूरी सुरक्षा प्रदान करती है यह बाजारों में जरूर के अनुसार विभिन्न रंगों और आकार में उपलब्ध होती है इसके द्वारा खेत की नमी और खरपतवार की समस्या से छुटकारा मिल जाता है।

प्लास्टिक मल्चिंग के प्रकार (Types of plastic mulching)

काली मल्चिंग पेपर – इस मल्चिंग का उपयोग खेत की नमी को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है इसके अलावा भूमि के तापमान को नियंत्रित करने में तथा खरपतवार से फसल को बचाने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है बागवानी के पेड़ पौधों के लिए काली मल्चिंग पेपर अच्छा रहता है।

दूधिया रंग की मल्चिंग – इस प्रकार की मल्चिंग भूमि में नमी को सुरक्षित रखने खरपतवार को नियंत्रित करने और तापमान को काम करने में काफी सहायक होती है इसका रंग सफेद दूधिया होता है।

पारदर्शी मल्चिंग – पारदर्शी मल्चिंग का उपयोग ठंड के मौसम में खेती की सुरक्षा के लिए किया जाता है इस मल्चिंग का उपयोग करने से पौधों की जड़ों तक धूप पहुंचती है जिसके कारण पौधों का विकास अच्छा होता है।

मल्चिंग बिछाने का क्या तरीका है (What is the method of laying mulching)

यदि आप अपने खेत में मल्चिंग विधि के द्वारा खेत में सब्जी लगाना चाहते हैं तो सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से जुताई कर लेना चाहिए और मिट्टी को फसल के अनुसार तैयार कर लेना चाहिए इसके बाद गोबर की सड़ी हुई खाद मिट्टी में मिला देनी चाहिए अब खेत में उठी हुई मेड या बेड आवश्यकता अनुसार बना लेनी चाहिए।

इसके बाद आपको ड्रिप सिंचाई विधि की आवश्यकता होगी इसलिए पाइपलाइन को खेत में बिछा देना चाहिए ड्रिप सिंचाई की पाइप बिछाने के बाद मल्चिंग पेपर के दोनों किनारो को मिट्टी की सहायता से अच्छी तरह से दबा दिया जाता है इसके बाद मल्चिंग पेपर पर गोलाई में पाइप की सहायता से पौधे से पौधे की दूरी तय करके छेद खोल देते हैं।

प्लास्टिक मल्चिंग पेपर की मोटाई (Thickness of plastic mulching paper)

प्लास्टिक मल्चिंग पेपर की मोटाई अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग उपयोग की जाती है एक वर्षीय फसलों के लिए 25 माइक्रोन वाली प्लास्टिक मल्चिंग पेपर का उपयोग करना चाहिए जबकि 2 वर्षीय  फसलों के लिए 50 माइक्रोन माइक्रोन वाली प्लास्टिक मल्चिंग उपयुक्त होती है जबकि बहूवर्षीय फसलों के लिए 100 माइक्रोन तक की मोटी वाली मल्चिंग का इस्तेमाल करना चाहिए।

प्राकृतिक मल्चिंग का उपयोग कैसे करें (How to Use Natural Mulching)

प्राकृतिक मल्चिंग (Mulching kya hai) का उपयोग करने के लिए मुख्य रूप से पेड़ों के पत्ते भूमि पर उगने वाली घास फूस धान की पराली अन्य फसलों के अवशेष के साथ लकड़ी का छिलका या बुरादा आदि को प्राकृतिक मल्चिंग करने के लिए उपयोग में लाया जाता है प्राकृतिक मल्चिंग समय के साथ विघटित होती है। कुछ समय बाद यह भूमि में मिलकर पोषक तत्व प्रदान करने लगते हैं जिससे भूमि की दशा में सुधार होता है।

प्राकृतिक मल्चिंग में पेड़ों की छाल पेड़ों के पत्ते घास फुस अन्य फसलों के अवशेष आदि को खेत की क्यारी के ऊपर बिछादिया जाता है जो मल्चिंग का काम करता है खेत में बिछाते समय इसकी मोटाई दो से तीन इंच होनी आवश्यक है ऐसा करने से खरपतवार नियंत्रित रहती हैं यह प्लास्टिक मल्चिंग की तरह ही फायदेमंद होती है किंतु इसमें खर्चा बहुत कम या ना के बराबर आता है इसका उपयोग करने से पानी की वाष्पोत्सर्जन क्रिया में कोई रुकावट नहीं आती है।

प्लास्टिक मल्चिंग में कितनी लागत आएगी (How much will plastic mulching cost?)

प्लास्टिक मल्चिंग में कितनी लागत आएगी यह इसकी मोटाई और लंबाई पर निर्भर करेगा जितना ज्यादा मोटी और लंबाई होगी उतना ही इसकी कीमत में वृद्धि होगी सामान्य तौर पर 20 से 30 माइक्रोन, 300 से 400 मीटर लंबी और 4 फीट चौड़ी प्लास्टिक मल्चिंग पेपर की कीमत ₹20000 से लेकर 25000 रुपए तक होती है।

आपको बता दे, मल्चिंग करने के लिए सरकार आपको अनुदान भी देती है अनुदान लेने के लिए आप अपने जिले के कृषि अधिकारी या कृषि विज्ञान केंद्र पर जानकारी ले सकते हैं हमें आशा है कि यह Mulching kya Hai लेख आपको पसंद आया होगा अगर आपको पसंद आया हो तो दोस्तों के साथ इस शेयर करना ना भूले ताकि वह भी मल्चिंग का उपयोग कर सके।

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