नील की खेती के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न | neel ki kheti 2024

neel ki kheti : नील की खेती बिहार बंगाल तमिलनाडु आंध्र प्रदेश और उत्तराखंड के सभी इलाकों में की जाती है नील के पौधे 3 से 4 महीने में उत्पादन देने योग्य होता है नील की खेती पत्तों को बेचकर 1 एकड़ में लगभग 40 से ₹50 हजार रूपए से भी अधिक की कमाई की जा सकती है।

नील की खेती की शुरुआत भारत में की गई थी आज इसकी खेती रंजक के रूप में की जाती है तथा रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल से भी नील तैयार किया जा रहा है लेकिन आज के समय में बाजार में प्राकृतिक नील की मांग बढ़ रही है इसी कारण किसानों ने नील की खेती करना शुरू कर दिया है नील की खेती करने से भूमि की उर्वरता में भी वृद्धि होती है और मिट्टी उपजाऊ बनती है।

वर्तमान समय में नील यानि इंडिगो की फसलो की विभिन्न किस्मों को उगाया जाता हैं इनमें सबसे आम इंडिगोफेरा टिंक्टोरिया और इंडिगो हेटेंरथा है इस फसल को ज्यादा वर्षा या जलभराव और ओलावृष्टि से बचाना बहुत जरूरी होता है क्योंकि जलभराव इसकी प्रमुख समस्या होती है।

इसके पौधे एक से दो मीटर ऊंचे हो जाते हैं और इनमें निकलने वाले फूलों का रंग बेंगनी और गुलाबी होता है इसके साथ-साथ पौधे 1 से 2 साल तक उत्पादन देते रहते हैं इस लेख में आज हम आपको इसकी खेती करने से पहले कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देना चाहते हैं तो आइए जानते हैं।

नील की खेती (neel ki kheti) कहां की जाती है.

वर्तमान समय में नील की खेती भारत में बिहार, बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड ने प्रमुख रूप से ही जा रहे हैं इसकी खेती जल निकास वाली भूमि उचित रहती है जलभराव वाली भूमि इसके के लिए हानिकारक होती है।

जलवायु (Climate)

नील की खेती करने के लिए उष्ण जलवायु और शीतोष्ण जलवायु अच्छी होती है इसके पौधे को बारिश की ज्यादा जरूरत होती है क्योंकि बारिश के समय इसके पौधे का विकास अधिक होता है परंतु अधिक गर्मी में इसका विकास रुक जाता है | जलभराव वाली भूमि इसके के लिए हानिकारक होती है।

नील की खेती का उपयोग (Use of Indigo Cultivation)

नील की खेती (neel ki kheti) का उपयोग ऊनो की रंगाई करने में रेशम की रंगाई करने में कम मात्रा का प्रयोग किया जाता है इसके अलावा रंजक के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है नील की पत्तियों को काटकर इनको सिखाया जाता है।

सुखाने के बाद इनको महीन पीसकर पाउडर बना लिया जाता है और इस पाउडर का प्रयोग कपड़ों को रंगने में अन्य डिजाइन में इसका प्रयोग किया जाता है इसी के साथ साथ इस पाउडर को बाजार में बेचकर अच्छा लाभ लिया जा सकता है।

नील की खेती कितने प्रकार की होती है? (How Many types of indigo Cultivation Are There?)

नील की खेती में लगभग 300 प्रजातियां पाई जाती है जिनमें से कुछ प्रजातियों से ही रंग निकाला जाता है वे भारत में ही पाई जाती है और भारत से ले जाकर अरब, मिश्र, तथा अमेरिका में भी उगाई जाती हैं नील का उद्भव स्थान भारत है भिन्न-भिन्न प्रजातियों की भिन्न-भिन्न प्रकारों से खेती की जाती है किंतु ज्यादा अंतर नहीं होता है।

इंडिया में नील की खेती की शुरुआत कहां हुई थी? (Where Did Indigo Cultivation Start in India?)

नील की खेती की शुरुआत भारत में 1777 में हुई थी भारत में बंगाल से इसकी शुरुआत की गई उस समय पर यह एक अच्छी नकदी प्रमुख फसल थी जिसका विस्तार पूरे भारत में हो चुका था लेकिन जब नील की खेती की आड़ में आकर किसानों पर अत्याचार होने लगे तो 1859 से 1860 के दशक में खुद बंगाल के किसान इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए तैयार हो गए और तभी से इस नील की खेती का एरिया और उत्पादन कम होने लगा।

भारत में अंग्रेजों ने बंगाल के बड़े हिस्से जैसे नादियां और जेस्सोर जिले में बड़े पैमाने पर नील की खेती की शुरुआत की थी वहां पर भूमि स्वामियों या जमीदारों से बटाईदारो और काश्तकारों के साथ में भूमि पट्टे पर ली।

और लेकर भूमि जोतने वालों को खाद फसलों के स्थान पर नील की खेती लगाने के लिए राजी किया स्थानीय नेता दिगंबर विश्वास और विष्णु विश्वास के नेतृत्व में किसानों ने नील की खेती को करना बंद कर दिया था।

नील का पौधा कैसा होता है? (What is the indigo plant like)

नील के पौधे की लंबाई 1 मीटर से 2 मीटर तक होती है यह 1 वर्षीय और 2 वर्षीय या सदाबहार भी हो सकता है यह स्थान की जलवायु पर निर्भर करता है इसकी पत्तियां हल्की हरी होती है तथा इसके पुष्प गुलाबी और बैंगनी रंग के होते हैं।

इस पर फलिया भी लगती है इसको बोनेसे खेत की मिट्टी उपजाऊ बन जाती है इसका असली रंग गहरा बैंगनी नीला होता है इसका इस्तेमाल कपड़ों को चमकाने के लिए किया जाता है और सफेद दाग को भी यह साफ कर देता है।

नील की खेती का उपयोग (Use of Indigo Cultivation)

नील की खेती( neel ki kheti)का उपयोग सूती कपड़ों में पीलेपन को ख़तम करने के लिए किया जाता है इसका प्रयोग घाव को साफ करने के लिए के रूप में भी किया जाता है और नील के पौधे का औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है  जैसे : –

  • लिवर की बीमारी ठीक करने में
  • लिवर को साफ करने के लिए
  • रक्त को साफ करने के लिए
  • सूजन को कम करने के लिए
  • दर्द को कम करने के लिए
  • बुखार में भी इसका प्रयोग बहुत अच्छा माना जाता है |
  • इसका प्रयोग रोगप्रतिरोध रक्षा शक्ति को भी बढ़ाता है |

नील की खेती के मुख्य तरीके थे (The main methods of indigo cultivation were)

नील की खेती के दो मुख्य तरीके थे निज और रैयती निजी खेती की व्यवस्था में बागान मालिक जो होते थे वह खुद ही अपनी जमीन में नील की खेती का उत्पादन करते थे या इसके अलावा वह जमीन खरीद लेते थे या दूसरे जमीदारों से जमीन भाड़े पर ले लेते थे और मजदूरों को काम पर लगाकर नील की खेती कराते थे तो इस प्रकार नील की खेती के दो मुख्य तरीके एक जमीन को भाड़े पर ले कर काम करना और दूसरा जमीन को खरीदकर नील की खेती कराना शामिल है |

नील की खेती की प्रमुख समस्याएं (Major Problems of Indigo cultivation)

नील की खेती कि नुकसान की बात करें तो प्रमुख रूप से यह जमीन को बंजर कर देती है और इसके अलावा किसी दूसरी फसल की बुवाई करना मुश्किल हो जाता है शायद यही कारण था कि अंग्रेज के द्वारा इसकी खेती को जबरदस्ती करके किसानों से उगाया जाता था इसके लिए अनेक आंदोलन भी हुए थे।

नील की खेती का आंदोलन (Indigo cultivation Movement)

नील की खेती (neel ki kheti) के लिए किसानों द्वारा एक आंदोलन भी किया गया था जो बंगाल के किसानों 1859 में किया था यह कहानी बहुत पुरानी है अर्थात नील कृषि अधिनियम पारित होने के बाद इस विद्रोह में आरंभ में नादिया जिले के किसानों ने 1859 में फरवरी-मार्च में नील का एक भी बीज बोने से मना कर दिया था।

यह आंदोलन पूरी तरह से हिंसा हो गया था तथा इसमें भारत देश के हिंदू और मुसलमान दोनों ने बराबर का हिस्सा लिया था 1860 तक बंगाल में नील की खेती ठप हो गई थी नील की खेती के लिए चंपारण सत्याग्रह महात्मा गांधी द्वारा जबरन खेती से छुटकारा पाने के लिए किया गया था 1917 में ब्रिटिश भारत में महात्मा गांधी के नेतृत्व में पहला सत्याग्रह आंदोलन था और इसे भारतीय आंदोलन में ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण विद्रोह माना भी जाता है।

निष्कर्ष: –

हम आशा करते हैं कि आपके समक्ष प्रस्तुत किए गये लेख नील की खेती के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न | neel ki kheti 2023 मैं दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी अच्छी लगी हो तो इसे अपने मित्रों के साथ साझा जरूर करें।

और साथ ही अपने सुझाव  खेती से जुड़ी किसी भी प्रकार के प्रश्न को कमेंट में पूछना ना भूले खेतीबाड़ी से जुड़ी इस प्रकार की रोचक लाभकारी पोस्ट पढ़ने के लिए कृपया हमारी वेबसाइट agriculturetree.com जरूर विजिट करें, [ जय जवान जय किसान ]

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