भैंस पालन की जानकारी | bhains palan kaise kare 2024

भैंस पालन की जानकारी | bhains palan kaise kare: अगर आप दूध उत्पादन के लिए भैंस पालन शुरू करने जा रहे हैं तो इसके लिए आपको भैंस पालन की पूरी और सही जानकारी होना बहुत जरूरी है तभी आप बेहतर दूध उत्पादन कर सकते हैं और जिससे अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं तो आइए जानते हैं।

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रो में पशुपालन आय का सबसे प्रमुख स्त्रोत रहा है यहां हम आपको आज भैंस पालन की संपूर्ण जानकारी देंगे जो कम वक्त में आपको बंपर मुनाफा देगी | भारत दूध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है फिर भी यहां दूध की मांग पूरी नहीं हो पाती है भैंस पालन का डेयरी उद्योग में काफी महत्व होता है।

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भैंस पालन की जानकारी (Buffalo Farming Information)

भारत में लगभग 55% दूध यानी 20 मिलियन टन दूध भैंस पालन से ही मिलता है मुर्रा भैंस सबसे अधिक दूध उत्पादन देने वाली भैंस की नस्ल है इसलिए समय-समय पर पशु का स्वास्थ्य परीक्षण करवाना चाहिए साथ ही पशुओं के पेट के कीड़े की दवा खुर पका मुंह पका गाला घोटु का टिका भी लगवाना चाहिए और सामान्य लक्षण दिखाई देने पर पशु चिकित्सा को दिखाना चाहिए।

सभी व्यापारी मुर्रा भैंस को अधिक महत्व देते हैं यह प्रतिदिन 15 से 22 लीटर दूध देती है मुर्रा भैंस पंजाब और हरियाणा राज्य में अधिक पाई जाती है और अब यह विदेशों में भी पाली जा रही है भारत में भैंसों की संख्या 105.3 मिलियन से बढ़कर 108.7 मिलीयन हो गई है।

किसान भाई खेती के साथ भैंस पालन करके बहुत आसानी से दोगुना लाभ कमा सकते हैं कोई भी व्यवसाय को शुरू करने से पहले आपको उसकी पूरी जानकारी होना बहुत जरूरी है इसलिए आज हमको हम आपको भैंस पालन की संपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं।

भैंस पालन के लिए जमीन की आवश्यकता (Requirement of land for Buffalo Rearing)

भैंस पालन शुरू करने के लिए सबसे पहले आपको अपनी खुद की जमीन की आवश्यकता है वैसे तो ग्रामीण क्षेत्र के सभी किसानों के पास अपनी जमीन होती है लेकिन बहुत से किसान भाइयों के पास अपनी जमीन नहीं होती है या कोई शहरी क्षेत्र में डेयरी लगाने के उदेश्य से भैंस पालन करना चाहते है।

तो इसके लिए आप किसी व्यक्ति की जमीन को किराए पर भी ले सकते हैं क्योंकि अगर आपको भैंस पालन करना है तो जमीन के बिना नहीं किया जा सकता है।

आपको एक से अधिक भैंस पालन करने की आवश्यकता होगी इसके बाद आपका व्यवसाय अच्छा मुनाफा कमा पाएगा | इसलिए आपके पास 12 से 15 वर्ग मीटर जमीन होनी जरूरी है अगर आप एक या दो भैसो को रखना चाहते है तो फिर आपको अधिक जमीन की आवश्कता नहीं होगी।

एक भैंस को प्रतिदिन दो बार परिवर्तित कर रखना होता है इसके लिए एक भैंस को कम से कम औसतन 100 वर्ग फीट जगह की आवश्यकता पड़ती है।

भैंस पालन के लिए बाड़े का निर्माण (Construction of Enclosure For Buffalo Rearing)

बाडे के निर्माण के लिए अच्छी तरह से सुखी हुई और भुरभुरी मिट्टी होनी चाहिए क्योंकि गीली मिट्टी में पशुओं को अनेक प्रकार की बीमारी होने का डर रहता है और दूध उत्पादन क्षमता भी घट जाती है जिससे भैंस पालन में हानि देखने को मिलती है इसलिए बड़ी जगह पर भैंस पालन शुरू किया जाना चाहिए और इसे ऊपर से ढक कर बंद कर देते हैं।

और चारों तरफ से खुला रहने देते हैं ताकि गर्मियों के मौसम में भी पशुओं को अधिक गर्मी का सामना ना करना पड़े इसके साथ साथ भैंस पालन के लिए बाड़े का निर्माण मौसम और स्थान के आधार पर करना चाहिए बाड़े के निर्माण के लिए सर्दियों के मौसम में चारों तरफ से बंद किया जाता है जबकि गर्मियों के मौसम में से चारों तरफ से खुला रखते है।

पशुओं के लिए संतुलित आहार (Balanced Diet for Animals)

भैसो के लिए अच्छे दूध उत्पादन के लिए संतुलित आहार देना बहुत जरूरी होता है एक बड़ी दुधारू भैंस की 1 दिन की खुराक लगभग 4 किलो दाना 3 किलो गेहूं का भूसा और 15 से 20 किलो हरा चारा देना चाहिए इसके अलावा – गेहूं, जौं, बाजरा, मक्का की लगभग 35% मात्रा अवश्य होनी चाहिए।

मौसम के अनुसार उनकी मात्रा कम ज्यादा की जा सकती है दानो को चक्की की सहायता से छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर ही देना चाहिए और पशुओं के दूध उत्पादन को और अधिक बढ़ाने के लिए खल करीब 32 किलो मात्रा तथा चौकर करीब 35 किलो मात्रा और 1 किलो नमक इन सब को मिलाकर संतुलित आहार देना चाहिए |

पानी की व्यवस्था (Water system)

भैंस पालन के लिए पानी की ज्यादा आवश्यकता पड़ती है क्योंकि भैंसों को पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है और इसके साथ ही भैंस को गाय बकरी से ज्यादा पानी देना होता है इसीलिए पशुपालन वाली जगह पर पानी की उचित व्यवस्था करनी चाहिए या फिर एक बड़े कुंड नुमा तालाब बना देना चाहिए।

जुलाई माह में ध्यान देने वाली बातें इस माह में वर्षा ऋतु आने की संभावना रहती है अतः पशु परिसर को सूखा एवं साफ रखना चाहिए तथा गर्मी एवं नमी जनित रोगों से पशुओं को बचाना चाहिए।

पशुओं के लिए पानी की व्यवस्था उन्नत और आधुनिक तरीके से करनी चाहिए इससे आप भैंस के दूध उत्पादन को बढ़ा सकेंगे क्योंकि पानी की व्यवस्था बहुत जरूरी होती है डेयरी फार्म पर जगह-जगह पर पानी की पीने के पानी की रिश्ता अच्छी ना होने के कारण वहां पर गंदगी हो जाती है जिससे पशुओं को अनेक बीमारी हो जाती है।

इसीलिए आपको पानी की उचित व्यवस्था करनी चाहिए स्टील या लोहे से बने बर्तनों या टंकी का प्रयोग करना चाहिए भैंस चाहे जब और जितनी मात्रा में पानी चाहे उसे उपलब्ध कराया जा सके।

भैंस पालन के लिए भैंसों की नस्ल (Breed of Buffalo for Buffalo Rearing)

मुर्रा

भैंस पालन के लिए यह विश्व की सबसे ज्यादा दूध देने वाली नस्ल है इसका मूल स्थान यूपी दिल्ली हरियाणा पंजाब जाना जाता है सींग जलेबी के समान गोल होते हैं इसका रंग काला होता है या (जैक ब्लैक) त्वचा मुलायम और चमकदार होती है इसके अलावा इसकी सिर और पैर पर सुनहरी रंग के बाल पाए जाते हैं इसके दूध में प्रोटीन की मात्रा 7% होती है।

प्रथम ब्यात की उम्र 46 महीने होती है और दो ब्यात के बीच का अंतराल लगभग 15 महीने रखा जाता है दूध उत्पादन की बात करें तो लगभग यह प्रतिदिन 12 से 20 लीटर तक दूध देती है इसके दूध में वर्षा 7. 3 प्रतिशत वसा पाई जाती है।

मेहसाना

गुजरात के मेहसाणा व् बनासकाठा जिले की मानी जाती है यह एक क्रॉस नस्ल है यह 2 नस्लों के संगठन से तैयार की गई है मुर्रा भैंस के साथ सुरती भैंस का क्रॉस कराके किया गया है अगर इसकी पहचान की बात करें तो इसके सींग जोड़ें तथा अंदर की तरफ मुड़े हुए होते हैं इसका रंग काला और गर्दन लंबी सुंदर होती है।

प्रथम ब्यात लगभग 42 महीने पर और दो ब्यात के बीच का अंतराल 16 महीने रखा जाता है अगर इसके दूध उत्पादन की बात करें तो 2000 लीटर प्रति दिया दूध देती है और दूध में वसा की मात्रा लगभग करें 6.8 % होती है।

बनी

कच्ची और कुंडली के नाम से भी जाना जाता है इस का उत्पत्ति स्थान गुजरात के कच्छ का बनी क्षेत्र माना जाता है उसी के नाम पर इसका नाम पड़ा है बनी कच्छ के रण में स्थित घास का मैदान वनों से घिरा हुआ क्षेत्र है जहां पर ज्यादातर लोग काम करते हैं आने वाले पशुपालक मालधारी के नाम से जाने जाते हैं।

बनी भैंसों का रंग काला होता है वह घुमावदार सींग पाए जाते हैं बनी भैंसों की ऊंचाई लगभग 140 सेंटीमीटर तक होती है और नर का वजन लगभग 550 किलोग्राम होता है और मादा का वजन 450 किलोग्राम होता है।

इसकी प्रथम ब्यात का समय 40 महीने होता है और दो ब्यात के बीच का अंतराल लगभग 13 महीने रहना चाहिए।
अगर इसके दूध उत्पादन की बात करें तो यह 2850 लीटर प्रति ब्यात दूध देती है इसके दूध में वसा की मात्रा 6.5% होती है।

जाफराबादी

यह भैंस पालन की एक अधिक दूध देने वाली नस्ल है इसका मूल स्थान गुजरात के गिर जंगल या काठियावाड़ और जाफराबाद क्षेत्र माने जाते हैं इस नस्ल की भैंस की लंबाई अधिक होती है।

इसका रंग काला होता है माथा भारी भरकम तथा उठा हुआ सींग चोडे तथा गर्दन की तरफ झुके हुए होते हैं यह भैंस की सबसे बड़ी नस्ल होती है इसके नर का वजन 650 किलोग्राम होता है और मादा का वजन 550 किलोग्राम होता है।

इस नस्ल के पशु एक ब्यात में लगभग 2500 लीटर तक दूध देती है इसके दूध में वर्षा की मात्रा 7.6 प्रतिशत होती है।

नीली रावी

इसे कल्याणी नाम से जाना जाता है यह पंजाब के फिरोजपुर में मुख्य रूप से पाई जाती है और अमृतसर तथा समतल सतलज नदी क्षेत्र में भी पाई जाती है सतलज नदी के पानी का रंग नीला होने के कारण ही इस भैंस का नाम नीली रखा गया है।

विशेषताएं- इसका रंग काला और माथे और चेहरा पर तथा पैरों पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं पूछ लंबी होती है तथा अंतिम भाग उसका सफेद होता है इसकी आंखें नीले रंग की होती है जिन्हें बोल आईज कहते हैं प्रथम ब्यात की उम्र 45 महीने होती है दूध उत्पादन 1850 लीटर होती है और दूध में वसा की मात्रा 6.8 होती है।

भैंस के प्रजनन के दौरान देखभाल (Care During Buffalo Breeding)

गर्भावस्था में पशुओं की खास देखभाल रखने की जरूरत होती है गर्भकाल के अंतिम महीनों में भैंस की कुछ बातों पर ध्यान रखकर नुकसान होने से बचा सकते हैं भैंस पालन के दौरान पशुओं के ब्याने के दौरान उन्हें अच्छी देखभाल की जरूरत होती है नई ब्याई गई भैंस को सर्दी लगने की वजह से उसकी दूध उत्पादन क्षमता कम हो जाती है इसी कारण अनेक रोग भी लगने का डर रहता है।

इसके अलावा पशु के ब्याने से पहले 1 किलो देसी घी और 1 किलो सरसों का तेल देना लाभकारी होता है अंतिम 3 महीने में पोषक तत्व की जरूरत होती है इस समय भैंस का वजन 20 से 30 किलो तक बढ़ जाता है इसलिए अच्छे दाने और पोषक तत्व की जरूरत होती है।

नवजात शिशु के जन्म लेने के बाद उसे उसके मुंह को साफ कर देना चाहिए और उन नाभि के नीचे पाए जाने वाले नाडू को 4 से 5 सेंटीमीटर नीचे धागे से बांध कर काट देना इसके बाद सूखने तक उसका पक्षी और पशुओं से बचाव करना चाहिए।

प्रसव के बाद भैंस की देखभाल (Buffalo care After Delivery)

भैंस के ब्याने के बाद भैंस की ही नहीं बल्कि बछड़े की भी देखभाल ठीक प्रकार से करनी चाहिए क्योंकि थोड़ी सी असावधानी से पशुओं में जन्म संबंधी रोग उत्पन्न हो जाते हैं प्रसव के बाद हम तौर पर पशुओं को ब्याने के बाद लगभग 2 से 6 घंटे के अंदर जेर गिरा देती है।

लेकिन किसी कारणवश कमजोर पशु में या बच्चेदानी में रोग होने और प्रसव के समय अधिक पीड़ा होने के कारण जेर बच्चेदानी से अलग नहीं हो पाती और यह बच्चेदानी के अंदर ही रह जाती है तो तो यह जनन अंगों में रूकावट पैदा करती है यह विकार विटामिन A या आयोडीन की कमी के कारण होता है।

भैंस पालन शुरू करने में लागत और सरकारी सहायता (Cost and Government Assistance in starting Buffalo Rearing)

यदि आप भैंस पालना चाहते हैं तो आप को लगभग 4 से 5 लाख रुपए की जरूरत है क्योंकि एक अच्छी भैंस की कीमत के बारे में बात करें तो यह सामान्य 50,000 से कम कि नहीं आती है ऐसे में अगर किसान 4 या इससे अधिक भैस रखना चाहता है तो उसके अनुसार ही उसे लागत लगानी होगी जो पशु खरीदने और उसके रहने खाने के लिए भी खर्चा होगा।

यदि आप भैंस लेने के लिए लोन लेना चाहते हैं तो आपको सरकार द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड योजना के तहत पशुपालन के लिए रु16 लाख तक लोन मिल सकता है लेकिन इसके लिए आपको 10 भैसो पर रु50000 से रु60000 तक का लोन मिल सकता है इसके लिए आपको संपत्ति गिरवी रखनी पड़ती है।

अगर इसके अलावा बात करें तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को एक भैंस की खरीद पर ₹23300 और बाकी श्रेणी के लोगों को ₹17750 दिए जाते हैं इसकी अधिकतम राशि डेढ़ लाख तक हो सकती है।

भैस में लगने वाली बीमारियां (Buffalo Diseases)

गलघोटू रोग

ये बीमारी भैसो को ज्यादा परेशान करती है भैसो में गलघोटू रोग संक्रमण के मध्य से होता है यह मुख्य रूप से बारिश के मौसम में अधिक फैलता है इसके लगने से पशुपालक को अधिक नुकसान का सामना करना पड़ता है क्योंकि पशुओं में इस रोग के लगने पर पशुओं की मित्यु बहुत जल्दी हो जाती है इसमें शरीर का तापमान बढ़ जाता है और पशु का गला सूज जाता है।

इसलिए इसे गलघोटू नाम दिया गया जिससे खाना निगलने में कठिनाई होती है वह पशु खाना नहीं खा पाता है पानी नहीं पीती पाता है सूजन होने के कारण उसने दर्द होता है सांस लेने में भी तकलीफ होती है और इसके बाद पशु को पतले दस्त भी होने लगते हैं इसमें पशु 6 से 24 घंटे के भीतर मर जाता है पशु के मुंह से लार भी निकलती है।

इसकी रोकथाम के लिए पशुओं का तुरंत इलाज कराना चाहिए बरसात के पहले ही निरोधक टिके लगवाने चाहिए और मवेशी को सुरक्षित कर लेना चाहिए उसके मुफ्त टीकाकरण की व्यवस्था विभिन्न विभागों द्वारा दी जाती है।

खुरपका मुंहपका

भैसो में खुरपका मुंहपका रोग काफी खतरनाक होता है इसका संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है इसमें पशु के मरने की संभावना बहुत ही कम रहती है फिर भी इस रोग में पशुपालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि इस रोग में पशु कमजोर हो जाते हैं और उनकी कार्यक्षमता और उत्पादन क्षमता कम हो जाती है।

यह बीमारी गाय बैल और भैंस के अलावा भेड़ों में भी लगती है इसमें पशु खाना कम कर देता है उसको बुखार आने लगता है मुंह में छाले बन जाते हैं और इसके बाद घाव में बदल जाते हैं रोग के बढ़ने पर पशु खड़ा होना बंद कर देता है।

इसकी रोकथाम करने के लिए पशुओं के मुंह के छालों को फिटकरी के 2% घोल से साफ करना चाहिए पैर के घाव को फिनाइल के घोल से भी धोना चाहिए पैरों में नीम और तुलसी के पत्ते का भी लेप कर सकते हैं घाव को मक्खी से भी बचाना अनिवार्य होता है।

पशु को साल में दो बार 6 माह के अंतर पर रोग निरोधक टीका लगवाना चाहिए इस रोग में पशुओं को गीली मिट्टी में अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए और पशुओं में रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत चिकित्सक को बुलाना चाहिए।

थनैला रोग

थनैला रोग यह दुधारू पशुओं में लगने वाला प्रमुख रोग है यह रोग दो कारणों से होता है पहला कारण है थन पर चोट लग जाना या थन कट जाना यह रोग कटे हुए थन के भाग के द्वारा जीवाणु का थन में प्रवेश कर जाने पर रोग फैलता है इसीलिए पशुओं को गंदे दलदली स्थानों पर नहीं बांधना चाहिए।

जिससे वहां पर कोई गंदगी के द्वारा जीवाणु प्रवेश ना कर पाए अनियमित रूप से दूध धोना भी थनैला रोग को नियंत्रित कर देता है इसलिए थनैला रोग में प्रभावित पशुओं को रोके शुरुआत में थन गर्म रहते हैं तथा उसके बाद इन में दर्द और सूजन होनी प्रारंभ हो जाती है।

और शरीर का तापमान भी बढ़ जाता है इससे दूध की गुणवत्ता में गिरावट आती है इस रोग में पशुओं के दूध का रंग बदल जाता है और दूध में जमावट देखने को मिलती है ये इस रोग के प्रमुख लक्षण होते हैं।

भैंस पालन से संबंधित FAQ

प्रशन – सबसे सस्ती भैंस कहां मिलती है?

उत्तर – भारत में सबसे सस्ती भैंस दिलदारनगर जिला – गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) में मिल सकती है इनकी कीमतें नस्लों के अनुसार कम बढ़ती होती रहती है।

प्रशन – एक भैंस कितने महीने दूध देती है?

उत्तर – एक भैंस लगभग 10 से 12 महीने दूध देती है | यह दिनों की अवस्था के आधार पर कम या ज्यादा भी हो सकता है।

प्रशन – सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंस की नस्ल कौन सी है?

उत्तर – सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंस की नस्ल में मुर्रा नस्ल को प्रथम दिया गया है ये एक ब्यात में लगभग 1000 लीटर दूध देती है.

प्रशन – सबसे ज्यादा घी पीने का रिकॉर्ड

उत्तर – सबसे ज्यादा घी पीने का रिकॉर्ड हरियाणा के ताऊ राजाराम जी ने संस्कार क्रांति न्यूज़ चैनल पर बनाया है ताऊ ने एक बार में 3 किलो 300 ग्राम घी पीकर नया इतिहास रच दिया है।

निष्कर्ष : –

हम आशा करते हैं कि आपके लिए समक्ष प्रस्तुत किए गए लेख भैंस पालन की जानकारी | bhains palan kaise kare जानकारी को पढ़ने के बादआपको बहुत लाभ होगा अगर यह पोस्ट आपको अच्छी लगी हो तो इसे अपने मित्र जनों के साथ जरूर साझा करें।

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